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________________ २२२ ] रत्नकरण्ड श्रावकाचार आगे भोगोपभोगपरिमाणवत के अतिचार कहते हैं [विषयविषतः] विषयरूपी विष से [ अनुपेक्षा ] उपेक्षा नहीं होना अर्थात् उसमें आदर रखना, [ अनुस्मृतिः ] भोगे हुए विषयों का बार-बार स्मरण करना, [अतिलौल्यं वर्तमान विषयों में अधिक लम्पटता रखना, [अतितृषानुभवो] आगामी विषयों की अधिक तृष्णा रखना और वर्तमान विषय का अत्यन्त आसक्ति से अनुभव करना | एते] ये [पञ्च | पांच [भोगोपभोगपरिमाव्यतिक्रमाः भोगोपभोगपरिमाणवत के अतिचार [कथ्यन्ते] कहे जाते हैं। टोकार्थ-भोगोपभोगपरिमाणवत के पांच अतिचारों का कथन करते हैं। इन्द्रियविषय विष के समान हैं। क्योंकि जिस प्रकार विष प्राणियों को दाह सन्ताप आदि उत्पन्न करता है उसी प्रकार विषय भी करते हैं। इस विषयल्प विष की उपेक्षा नहीं करना, उनके प्रति आदर बनाये रखना, अनुपेक्षा नामक अतिचार है । विषयों का उपभोग विषयसम्बन्धी वेदना के प्रतिकार के लिए किया जाता है। विषयों का उपभोग कर लेने पर, वेदना का प्रतिकार हो जाने पर भी पुनः संभाषण आलिंगन आदि में जो आदर होता है वह अत्यन्त आसक्ति का जनक होने से अतिचार माना जाता है । विषय अनुभव से वेदना का प्रतिकार हो जाने पर भी सौन्दर्य जनित सुख का साधन होने से विषयों का बार-बार स्मरण करना यह अनुस्मृति नामका अतिचार है। यह अत्यन्त आसक्ति का कारण होने से अतिचार है। विषयों में अत्यन्त गृद्धता रखना, विषयों का प्रतिकार हो जाने पर भी बार-बार उसके अनुभव की आकांक्षा रखना प्रतिलौल्य नामका अतिचार है । आगामी भोगों की प्राप्ति की अत्यधिक मृद्धता रखना असितषा नामका अतिचार है। नियतकाल में भी जब भोगोपभोग का अनुभव करता है तब अत्यन्त आसक्ति से करता है वेदना के प्रतिकार की भावना से नहीं, अतः यह प्रतिप्रनुभव नामका अतिचार है। विशेषार्थ- तत्त्वार्थ सूत्रकार आचार्य उमास्वामी ने इस अत के 'सचित्तसम्बन्धसम्मिश्राभिषवदुः पक्वाहारा: ।।७।२५।।' सूत्र से जो पांच अतिचार बताये हैं व समन्तभद्रस्वामी द्वारा निर्दिष्ट अतिचारों से भिन्न हैं। अन्य आचार्यों ने भी आचार्य उमास्वामी का ही अनुसरण किया है। भोग और उपभोग की अनेक वस्तुएँ होने से सबके अतिचारों का निर्धारण असम्भव जानकर उन्होंने मात्र भोजन सम्बन्धी अतिचारों
SR No.090397
Book TitleRatnakarand Shravakachar
Original Sutra AuthorSamantbhadracharya
AuthorAadimati Mata
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages360
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size9 MB
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