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विशेषार्थ - व्रती श्रावक भोगोपभोग की वस्तुओं का नियम इस प्रकार लेवेंकि मैं आज एक बार या दो बार ही भोजन करूंगा । आज सवारी पर बैठकर सफर नहीं करूंगा । आज पलंग पर न सोकर नीचे जमीन पर ही सोऊँगा । आज स्नान एक बार ही करूंगा अथवा स्नान नहीं करूंगा । शरीर पर सुगन्धादि विलेपन का जीवनपर्यन्त त्याग करता हूँ । आज फूलों की माला नहीं पहनूंगा । मेरे पान खाने का आजीवन त्याग है | आज दिन में दो या चार वस्त्र ही पहिनूंगा । आज आभूषण बिलकुल ही नहीं पहिनू गा । आज काम सेवन का त्याग है। आज गीत नृत्य वादित्रादि संगीत में नहीं जाऊँगा, नहीं करूंगा ! इस प्रकार कुछ समय तक का या कुछ वस्तुओं का परिमाण करके त्याग करता है, वह नियम कहलाता है । अथवा इन्हीं वस्तुओं में से कुछ वस्तु का जीवनपर्यन्त त्याग किया जाता है वह यम कहलाता है। ।। ४२-४३ ।। ८६ ।।
भोगोपभोगपरिमाणस्येदानीमतिचारानाह
रत्नकरण्ड श्रावकाचार
विषय विषतोऽनुपेक्षासुस्मृतिरतिसाध्यमतिसृषानुभव। भोगोपभोगपरिमा व्यतिक्रमाः पञ्च कथ्यन्ते ॥ ४४ ॥ ४५ ॥
भोगोपभोगपरिमाणं तस्य व्यतिक्रमा अतिचाराः पंच कथ्यन्ते । के ते इत्याहविषयेत्यादि विषय एवं विषं प्राणिनां दाहसंतापादि विधायित्वात् तेषु ततोऽनुप्र ेक्षा उपेक्षायास्त्यागस्याभावोऽनुपेक्षा आदर इत्यर्थः । विषयवेदनाप्रतिकारार्थोहि विषयानुभवस्तस्मात्तत्प्रतीकारे जातेऽपि पुनर्यत्संभाषणा लिंगनाद्यादरः सोऽत्यासक्तिजनकत्वादतीचारः । अनुस्मृतिस्तदनुभवात्प्रतीकारे जातेऽपि पुनविषयाणां सौन्दर्य सुखसाधनत्वादनुस्मरणमत्यासक्तिर्हेतुत्वादतीचारः । अतिलौल्यमतिगृद्धिस्तत्प्रतिकार जातेऽपि पुनः पुनस्तदनुभवाकांक्षेत्यर्थः । अतितृषाभावि भोगोपभोगादेरतिगृद्ध्या प्राप्त्याकांक्षा । अत्यनुभवो नियतकालेऽपि यदा भोगोपभोगावनुभवति तदाऽत्यासक्त्यानुभवति न पुनर्वेदनाप्रतीकारतयाऽतोऽतिचारः ॥ ४४ ॥
इतिप्रभाचन्द्रविरचितायां समन्तभद्रस्वामिविरचितोपासकाध्ययनटीकायां तृतीय परिच्छेदः ॥ ३ ॥