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________________ २०६ ] रत्नकरण्ड श्रावकाचार दुःश्रुति का स्वरूप बतलाते हुए कहते हैं- ( आरम्भसंगसाहसमिथ्यात्वद्वेषरागमदमदनेः ) आरम्भ, परिग्रह, साहस, मिथ्यात्व, द्वेष, राग, अहंकार और काम के द्वारा ( चेतः) चित्त को ( कलुषयताम् ) कलुषित करने वाले ( अवधीनां ) शास्त्रों का ( श्रुतिः) सुनना दृश्रुतिः ) दुःश्रुति नामका अनर्थदण्ड (भवति) है 1 ( I 1 टोकार्थ - खेती आदि करना आरम्भ है । और संग परिग्रह है । इन दोनों का प्रतिपादन वार्तानीति में किया जाता है । 'कृषि पशुपाल्यं - वाणिज्यं च वार्ता' इति अभिधानात् अर्थात् खेती, पशुपालन और व्यापार यह सब वार्ता है, ऐसा कहा गया है। अर्थशास्त्र को वार्ता कहते हैं । साहस का अर्थ अत्यन्त आश्चर्यजनक कार्य है । जिसका वर्णन वीर पुरुषों की कथाओं में किया जाता है । अर्द्ध तवाद तथा क्षणिकवाद मिथ्यात्व हैं । इनका वर्णन प्रमाणविरुद्ध अर्थ के प्रतिपादक शास्त्रों के द्वारा किया गया है । द्वेष - द्वेषीकरण-द्वेष को उत्पन्न करने वाले शास्त्रों के द्वारा कहा जाता है । वशीकरण आदि शास्त्रों के द्वारा राग उत्पन्न किया जाता है । मद अहंकार है । इसकी उत्पत्ति 'वर्णानां ब्राह्मणो गुरुः' वर्णों का गुरु ब्राह्मण है इत्यादि ग्रन्थों से जानी जाती है । मदन का अर्थ काम है | यह रतिगुण विलासपताका आदि शास्त्रों से उत्कष्ट होता है । इस प्रकार आरम्भादि के द्वारा चित्त को कलुषित करने वाले शास्त्रों का श्रवण करना दु:श्रुतिनामक अनर्थदण्ड है । इसका त्याग करना दुःश्र ति अनर्थदण्डव्रत है । विशेषार्थ - कुछ शास्त्र ऐसे होते हैं जिनमें मुख्यरूप से काम, भोग सम्बन्धी या हिंसा चोरी आदि का ही कथन रहता है । जैसे - वात्स्यायन का काम सूत्र है । कोकशास्त्र, जासूसी उपन्यास, वशीकरण आदि तन्त्रशास्त्र तथा आरम्भ-परिग्रह विषयकशास्त्र इनके सुनने से मन विकृत होता है, पढ़कर काम विकार उत्पन्न होता है बुरी आदतें पड़ जाती हैं । अतः ऐसी पुस्तकों को या शास्त्रों को पढ़ना दुःश्रुति अर्थदण्ड है । व्रती मनुष्य को ऐसे शास्त्रों का पठन-मनन नहीं करना चाहिए। जो खोटे मार्ग का निराकरण करके सर्वज्ञ प्रणीत मार्ग में अग्रसर करे, तथा आत्मा को परमात्मा बना सके ऐसे सच्चे शास्त्रों का पठन-श्रवण-मनन ही श्रेयस्कर है। कुशास्त्रों में बुद्धि का दुरुपयोग करने से मनुष्य आरम्भ, परिग्रह में फँसकर अपना
SR No.090397
Book TitleRatnakarand Shravakachar
Original Sutra AuthorSamantbhadracharya
AuthorAadimati Mata
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages360
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size9 MB
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