________________
रत्नकरण्ड श्रावकाचार
[ २०५ पक्षियों को मारने वाले लोगों को यह उपदेश देना कि अमुक स्थान पर हरिण, शूकर पक्षी आदि अधिक हैं, यह बधकोपदेश है और किसान आदि आरम्भ करने वालों को पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु तथा वनस्पति का आरम्भ इन-इन उपायों से करना चाहिए, ऐसा उपदेश देना आरम्भकोपदेश है। इस प्रकार तिर्यग्क्लेश आदि को उत्पन्न करने वाली कथाओं का जो प्रसङ्ग है उसे पापोपदेश जानना चाहिए । लाटी संहिता में अनर्थदण्ड विरति को श्रावक के बारहनतरूपी वृक्षों का मूल कहा है। एक अनर्थदण्ड के त्याग से प्राणी बिना किसी प्रयत्न के वती हो जाता है, उनका यह कथन सत्य है। यदि मनुष्य बिना प्रयोजन पाप कार्यों में प्रवृत्ति न करे तो उसे रुपये में बारह आना पाप कर्मों से छुटकारा मिल जाता है ।।३०॥७६॥
अथ हिंसादानं किमित्याहपरशुकृपाणखनित्रज्वलनायुध गिशृखलादीनाम् । वधहेतूनां धान हिंसादान' ब्रुवन्ति बुधाः ॥३॥ 32.11
हिंसादानं ब्रवन्ति' के ते ? 'बुधा' गणधरदेवादयः । कि तत् ? 'दान' । यत्केषां ? 'वधहेतूनां' हिंसाकारणानां । केषांतत्कारणानामित्याह-'परश्वि' इत्यादि । परशुश्च कृपाणश्च खनित्रं च ज्वलनश्चाऽऽयुधानि च क्षरिकालकुटादीनिशृगि च विषसामान्य शृखला च ता आदयो येषां ते तथोक्तास्तेषाम् ॥३१॥
हिंसादान क्या है ? यह कहते हैं
( बुधाः ) गणधरदेवादिक विज्ञपुरुष ( परशुकृपाणखनित्रज्वलनायुधशृङ्गिशृङ्खलादीनाम् ) फरसा, तलवार, कुदारी, अग्नि, शस्त्र, विष तथा सांकल आदिक (वघहेतूनां) हिंसा के कारणों के दान को ( हिंसादानं ) हिंसादान नामका अनर्थदण्ड (अवन्ति) कहते हैं।
टोकार्थ-हिंसा के उपकरण दूसरों को देना, इसे गणधरदेवादिकों ने हिंसादान कहा है । फरसा आदि को परशु कहते हैं । तलवार, कृपाण है । पृथ्वी को खोदने के साधन कुदाली, फावड़ा आदि खनित्र कहे जाते हैं । अग्नि को ज्वलन कहते हैं । छुरी, लाठी आदि आयुध हैं। विषसामान्य को शृगी कहते हैं, और बन्धन का साधन सांकल है । ये सब हिंसा के कारण हैं। इनको दूसरों के लिए देना हिंसादान अनर्थदण्ड है, इसका त्याग करना हिंसादान अनर्थदण्डवत है।