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________________ २०० ] रत्नकरण्ड श्रावकाचार ऊर्ध्वाधस्तात्तिर्यन्व्यतिपाताः क्षेत्रवद्धिरवधीनाम् । विस्मरणं दिग्विरतरत्याशाः पञ्च मन्यन्ते ॥16॥2011 'दिग्विरतरत्याशा' अतीचारा: 'पंचमन्यन्तेभ्युपगम्यन्ते । तथा हि । अज्ञानात् प्रमादाद्वा ऊर्ध्वदिशोऽधस्ताद्दिशस्तिर्यग्दिशश्च व्यतिपाता: विशेषेणातिक्रमणानि त्रयः ! तथाऽज्ञानात् प्रमादाद्वा 'क्षेत्रवृद्धि:' क्षेत्राधिक्यावधारणं । तथाऽवधीनां दिग्विरते: कृतमर्यादानां 'विस्मरण' मिति ।।२७।। अब दिग्विरतिघ्त के अतिचार कहते हैं ( ऊवधिस्तात्तिर्यगव्यतिपाताः ) अज्ञान अथवा प्रमाद से ऊपर, नीचे और तिर्यक् अर्थात् समान धरातल की सीमा का उल्लंघन करना ( क्षेत्रवृद्धिः ) क्षेत्र को बढ़ा लेना और (अवधीनां) की हुई मर्यादा को भूल जाना (इति) ये (पञ्च ) पांच (दिग्विरते:) दिग्विरति व्रत के (अत्याशा:) अतिचार (मन्यन्ते) माने जाते हैं । टोकार्य--दिग्नत के पाँच अतिचार हैं। अज्ञान अथवा प्रमाद से ऊपर पर्वतादि पर चढ़ते समय, नीचे कए आदि में उतरते समय और तिर्यग अर्थात समतल पृथ्वी पर चलते समय की हुई मर्यादा को भूलकर सीमा का उल्लंघन करना। प्रमाद अथवा अज्ञानता से किसी दिशा का क्षेत्र बढ़ा लेना और प्रत लेते समय दसों दिशाओं की जो मर्यादा की थी उसे भूल जाना ये पाँच अतिचार दिग्वत के हैं । विशेषार्थ-जैसे किसी ने नियम किया कि मैं १५ हजार फुट तक ऊपर जाऊंगा, किन्तु वायुयान से यात्रा करते समय या पर्वत पर चढ़ते समय नियम का ख्याल न रखके की हुई मर्यादा से अधिक ऊँचाई तक चले जाना यह ऊर्धव्यतिक्रम नामक अतिचार है। इसी प्रकार किसी ने नीचे उतरने का नियम किया कि मैं इतने फट तक नीचे जाऊँगा किन्तु की हुई मर्यादा से अधिक नीचे कुए अथवा खान में उतर जाना अधस्ताव्यतिपात है । किसी ने पूर्वादि चारों दिशाओं में पाँचसौ-पाँचसो मील तक आने-जाने का प्रमाण किया था, गमन करते समय स्पष्ट रूप से स्मरण नहीं रहा और प्रमाण किया था उससे अधिक आगे निकल जाना तिर्यग्व्यतिक्रम है । क्षेत्रवृद्धिपर्व आदि देश की मर्यादा में कमी करके पश्चिम आदि देश की तरफ की सीमा बढ़ा लेना जैसे पश्चिम दिशा में सातसौ मील की दूरी पर व्यापार का अच्छा केन्द्र खुल गया है वहां से यदि माल लायेंगे तो अच्छा मुनाफा होगा, पूर्व दिशा में कोई विशेष
SR No.090397
Book TitleRatnakarand Shravakachar
Original Sutra AuthorSamantbhadracharya
AuthorAadimati Mata
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages360
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size9 MB
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