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रत्नकरण्ड श्रावकाचार
( धनश्री सत्यघोषी च ) धनश्री और सत्यघोष ( तापसारक्षको अपि) तापस और कोतवाल (तथा) और ( श्मधुनवनीतः ) श्मश्रुनवनीत ये पांच ( यथाक्रमं ) क्रम से हिंसादि पापों में ( उपाख्येयाः ) उपाख्यान करने के योग्य हैं - इष्टान्त देने के योग्य हैं ।
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टीकार्थ – धनश्री नामकी सेठानी ने हिंसा से बहुत प्रकार का दुःखदायक फल भोगा है । सत्यघोष पुरोहित ने असत्य बोलने से, तापस ने चोरी से और कोतवाल ने ब्रह्मचर्य का अभाव होने से बहुत दुःख भोगा है। इसी प्रकार श्मश्रुनवनीत नामके वणिक ने परिग्रह पाप के कारण बहुत दुःख भोगा है । अतः ये सब ऊपर बताये हुए क्रम से दृष्टान्त देने के योग्य हैं । उनमें धनश्री हिंसा पाप के फल से दुर्गति को प्राप्त हुई थी । इसकी कथा इस प्रकार है
धनश्री की कथा
लाटदेश के भृगुकच्छ नगर में राजा लोकपाल रहता था। वहीं पर एक धनपाल नामका सेठ रहता था । उसकी स्त्री का नाम धनश्री था। धनश्री जीवहिंसा से कुछ भी विरत नहीं थी अर्थात् निरन्तर जीवहिंसा में तत्पर रहती थी । उसकी सुन्दरी नामकी पुत्री और गुणपाल नामका पुत्र था। जब धनश्री के पुत्र नहीं हुआ था तब उसने कुण्डल नामक एक बालक का पुत्रबुद्धि से पालन-पोषण किया था । समय पाकर जब धनपाल की मृत्यु हो गयी तब धनश्री उस कुण्डल के साथ कुकर्म करने लगी। इधर धनश्री का पुत्र गुणपाल जब गुण और दोषों को जानने लगा तब उससे शंकित होकर धनश्री ने कुण्डल से कहा कि मैं गोंखर में गाएँ चराने के लिए गुणपाल को जंगल भेजूंगी सो तुम उसके पीछे लगकर उसे वहां मार डालो, जिससे हम दोनों का स्वच्छन्द रहना हो जायगा -कोई रोक-टोक नहीं रहेगी। यह सब कहते हुए माता को सुन्दरी ने सुन लिया, इसलिए उसने अपने भाई गुणपाल से कह दिया कि आज रात्रि में गोधन लेकर गोंखर में माता तुम्हें जंगल भेजेगी और वहां कुण्डल के हाथ से तुम्हें मरवा डालेगी, इसलिए तुम्हें सावधान रहना चाहिए ।
धनश्री ने रात्रि के पिछले पहर में गुणपाल से कहा हे पुत्र ! कुण्डल का शरीर ठीक नहीं है इसलिए आज तुम गोंखर में गोधन लेकर जाओ | गुणपाल गोधन को लेकर जंगल गया और वहां एक काष्ठ को कपड़े से ढ़ककर छिपकर बैठ गया ।