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________________ १५२ ] रत्नकरण्ड श्रावकाचार कुण्डल ने आकर 'यह गुणपाल है' ऐसा समझकर वस्त्र से ढके हुए काष्ठ पर प्रहार किया । उसी समय गुणपाल ने तलवार से उसे मार डाला। जब गुणपाल घर आया तब धनश्री ने पूछा कि रे गुणपाल ! कृण्डल कहां है ? गुणपाल ने कहा कि कुण्डल की बात को यह तलवार जानती है । तदनन्तर खून से लिप्त बाहु को देखकर धनश्री ने उसो तलवार से गुणपाल को मार दिया । भाई को मारते देख सुन्दरी ने उसे मुसल से मारना शुरू किया। इसी बीच में कोलाहल होने से कोतवाल ने धनश्री को पकड़ कर राजा के गाने पस्थित किया। काग में उसे गधे पर चढ़ाया तथा कान, नाक आदि कटवाकर दण्डित किया, जिससे मरकर वह दुर्गति को प्राप्त हुई। इस तरह प्रथम अव्रत से सम्बद्ध कथा पूर्ण हुई। सत्यघोष असत्य बोलने से बहुत दुःख को प्राप्त हुआ था। इसकी कथा इस प्रकार है सत्यघोष की कथा जम्बूद्वीप के भरतक्षेत्र सम्बन्धी सिंहपुर नगर में राजा सिंहसेन रहता था । उसकी रानी का नाम रामदत्ता था । उसी राजा का एक श्रीभूति नामका पुरोहित था । वह जनेउ में केंची बांधकर घूमा करता था और कहता था कि यदि मैं असत्य बोल' तो इस कैंची से अपनी जिह्वा का छेद कर लू। इस तरह कपट से रहते हुए उस पुरोहित का नाम सत्यघोष पड़ गया । लोग विश्वास को प्राप्त होकर उसके पास अपना धन रखने लगे । वह उस धन में से कुछ तो रखने वालों को दे देता था, और बाकी स्वयं ग्रहण कर लेता था। लोग रोने से डरते थे और कोई रोता भी था तो राजा उसकी सुनता ही नहीं था। तदनन्तर एक समय पद्मखण्ड नगर से एक समुद्रदत्त नामका सेठ आया । वह वहां सत्य घोष के पास अपने पांच बहुमूल्य रल रखकर धन उपाजित करने के लिए दूसरे पार चला गया और वहां धनोपार्जन करके जब लौट रहा था तब उसका जहाज फट गया । काठ के एक पाटिये से वह समुद्र को पारकर रखे हुए मणियों को प्राप्त करने की इच्छा से सिंहपुर में सत्यघोष के पास आया । रङ्क के समान आते हुए उसे देखकर उसके मणियों को हरने के लिए सत्यघोष ने विश्वास की पूर्ति के लिए समीप में बैठे हुए लोगों से कहा कि यह पुरुष जहाज फट जाने से पागल हो गया है
SR No.090397
Book TitleRatnakarand Shravakachar
Original Sutra AuthorSamantbhadracharya
AuthorAadimati Mata
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages360
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size9 MB
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