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________________ रत्नकरण्ड श्रावकाचार २. कृतज्ञता- अपने प्रति किये गये उपकार को मानना, उपकारी के प्रति सम्मान प्रकट करना और उसका निह्नव न करके गौरव के साथ उनके नाम आदि का उल्लेख करना आदि कृतज्ञता कहलाती है। यही कारण है कि शिष्ट ग्रंथकर्ता अपनी रचना के प्रारम्भ में अपने उस उपकारी का स्मरण करना परम कर्तव्य समझते हैं और श्रद्धा से उनका नामोल्लेख करते हैं । मन खन्य में दो गुट बन निगा जा रहा है उसके अर्थतः मूल वक्ता श्री वर्धमान स्वामी हैं । उन्होंने श्रेयोमार्ग का उपदेश दिया तथा उसकी ग्रन्थरूप से रचना करने वाले गणधर देव तथा अन्य आचार्यों के द्वारा वह अब तक प्रवाहरूप से चला आ रहा है । अतएव कृतज्ञ ग्रन्थकर्ता श्री समन्तभद्रस्वामी ने उनको यहाँ स्मरण किया है। ३. प्राम्नाय-यद्यपि इस शब्द के अनेक अर्थ हैं लेकिन यहाँ पर आचार्य परम्परागत (प्राचीन आचार्यों के द्वारा चली आई प्रवृत्ति के अनुसार) अर्थ का ग्रहण करना चाहिए। क्योंकि मर्यादा का रक्षण एक महान् गुण है और उसका भंग करना महान् दोष है। अभिमत कार्य के प्रारम्भ में इष्टदेव का स्मरण करना महान तार्किक आचार्य समन्तभद्र स्वामी ने अपने इस 'श्रावकाचार' के प्रारम्भ में भी उचित समझा है। क्योंकि वे न केवल तथाकथित परीक्षा प्रधानी ही थे अपितु परीक्षा प्रधानता से भी पूर्व आज्ञाप्रधानी और परम्परारूप मर्यादा के पालन करने वाले भी थे। यही कारण है कि अपने से पूर्ववर्ती आचार्यों की मंगलाचरण करने की आम्नाय का उन्होंने भी यथावत् अनुसरण किया है। ४. मंगल कामना- मंगल शब्द के दो अर्थ प्रसिद्ध हैं-'मं पाप गालयतिविनाशयति इति' तथा 'मंग-सुखं पुण्यं वा लाति ददाति इति' । अर्थात् जो पापका नाश करता है और पुण्य की प्राप्ति कराता है, वह मंगल है । प्रारम्भ किये गये शुभ कार्यों के पूर्ण होने में अनेक प्रकार की विघ्न-बाधाएँ आने की सम्भावना रहा करती है। विश्नों का कारण अन्तरायादि पाप कर्मों का उदय तथा साता आदि पुण्य कर्मों का अनुदय अथवा मन्दोदय है। वीतराग सर्वज्ञ हितोपदेशी परमात्मा आप्त परमेष्ठी के पवित्र गुणों के स्मरण से अन्तराय आदि पाप कर्मों की शक्ति क्षीण हो जाती है और सातावेदनीय आदि पुण्य
SR No.090397
Book TitleRatnakarand Shravakachar
Original Sutra AuthorSamantbhadracharya
AuthorAadimati Mata
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages360
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size9 MB
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