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टोकार्थ - हिंसाविरति नामक अणुव्रत से यमपाल चाण्डाल ने उत्तम प्रतिष्ठा प्राप्त की । इसकी कथा इस प्रकार है
रत्नकरण्ड श्रावकाचार
यमपाल चाण्डाल की कथा
सुरम्य देश पोदनपुर में राजा महाबल रहता था । नन्दीश्वर पर्व की अष्टमी के दिन राजा ने यह घोषणा की कि आठ दिन तक नगर में जीवघात नहीं किया जावेगा । राजा का बल नामका एक पुत्र था, जो मांस खाने में आसक्त था । उसने यह विचार कर कि यहां कोई पुरुष दिखाई नहीं दे रहा है, इसलिए छिपकर राजा के बगीचे में राजा के मेंढा को मारकर तथा पकाकर खा लिया । राजा ने जब मेंढा मारे जाने का समाचार सुना, तब वह बहुत क्रुद्ध हुआ । उसने मेंढा मारने वाले की खोज शुरू कर दी । उस बगीचे का माली पेड़ के ऊपर चढ़ा था । उसने राजकुमार को मेंढा मारते हुए देख लिया था । माली ने रात में यह बात अपनी स्त्री से कही । तदनन्तर छिपे हुए गुप्तचर पुरुष ने राजा से यह समाचार कह दिया । प्रातःकाल माली को बुलाया गया । उसने भी यह उपाचार फिर कह दिया। मेरी आज्ञा को मेरा पुत्र ही खण्डित करता है इससे रुष्ट होकर राजा ने कोटपाल से कहा कि बलकुमार के नौ टुकड़े करा दो अर्थात् उसे मरवा दो ।
तदनन्तर उस कुमार को मारने के स्थान पर ले जाकर चाण्डाल को लाने के लिये जो आदमी गये थे उन्हें देखकर चाण्डाल ने अपनी स्त्री से कहा कि हे प्रिये ! तुम इन लोगों से कह दो कि चाण्डाल गांव गया है। ऐसा कहकर वह घर के कोने में छिपकर बैठ गया । जब सिपाहियों ने चाण्डाल को बुलाया तब चाण्डाली ने कह दिया कि वे आज गांव गये हैं । सिपाहियों ने कहा कि वह पापी गया । राजकुमार को मारने से उसे बहुत भारी सुवर्ण और उनके वचन सुनकर चाण्डाली को धन का लोभ आ गया । अतः वह मुख से तो बारबार यही कहती रही कि वे गांव गये हैं, परन्तु हाथ के संकेत से उसे दिखा दिया | तदनन्तर सिपाहियों ने उसे घर से निकाल कर मारने के लिए वह राजकुमार सौंप दिया । चाण्डाल ने कहा कि मैं आज चतुर्दशी के दिन जीवघात नहीं करता हूँ । तब सिपाहियों ने उसे ले जाकर राजा से कहा कि देव ! यह राजकुमार को नहीं मार रहा है। उसने राजा से कहा कि एक बार मुझे साँप ने डस लिया था, जिससे मृत
अभागा आज गांव चला रत्नादिक का लाभ होता ।