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________________ रत्न करण्ड श्रावकाचार [ १५७ अधिकार में कर लिया जाय तो उसे विरुद्ध राज्य कहते हैं। उसमें अतिक्रम का मतलब है उचित न्याय से भिन्न ही प्रकार से लेना देना, विरुद्ध राज्य में सस्ती वस्तुओं को ऊँचे मूल्य पर बेचने का प्रयत्न किया जाता है अथवा परस्पर में विरोधी दो राजाओं का राज्य अर्थात् उनकी नियमित भूमि, सेना वगैरह विरुद्ध राज्य है उसका अतिक्रम अर्थात् व्यवस्था का उल्लंघन । अर्थात् एक राज्य के निवासी का दूसरे राज्य में प्रवेश करना, जैसा-पाकिस्तान और भारत में होता है । यद्यपि अपने राजा की आज्ञा के बिना ऐसा करना बिना दी ई वान के बाहर होने से तमा रेसा करने वाले चोरी के दण्ड के योग्य होने से चोरी रूप ही है, तथापि ऐसा करने वाले व्यापारी की भावना यह रहती है कि मैं तो व्यापार करता हूं चोरी नहीं करता, लोक में भी उसे कोई चोर नहीं कहता, अतः व्रतसापेक्ष होने से यह अतिचार है ।। वास्तव में, तो ये पांचों ही स्पष्ट रूप से चोरी में आते हैं । कोई चोर व्यक्ति यदि चोरी न करने का नियम लेता है तो उसकी दृष्टि से इन्हें अतिचार की श्रेणी में रखा जा सकता है । प्रायः सभी ग्रन्थकारों ने ये पाँचौं अतिचार बतलाये हैं। प्राचार्यसमन्तभद्र ने विरुद्ध राज्यातिक्रम के स्थान पर विलोप नामक अतिचार रखा है, जिसका अर्थ है राजाज्ञा को न मानना । सोमदेव ने अधिक बाट तराजू और कम बाट-तराजू को अलग अतिचार गिनाया है। तथा विरुद्ध-राज्यातिक्रम के स्थान पर विग्रह और अर्थ संग्रह नामक अतिचार को स्थान दिया है । अर्थात् युद्ध के समय पदार्थों का संग्रह करना कि मूल्य बढ़ने पर बेचकर धन कमायेंगे। यह बराबर अतिचार की कोटि में आता है क्योंकि इसमें शुद्ध व्यापार की भावना है। ___ अचौर्याणवत की रक्षा के लिए तत्त्वार्थसूत्र में पांच भावनाओं का वर्णन इस प्रकार किया है ___ 'शून्यागार विमोचितावास परोपरोधाकरण भक्ष्यशुद्धिसधर्माविसंवादाः पंच' अर्थात्-शून्यागारवास-पर्वत की गुफाओं तथा वृक्ष की कोटरों आदि प्राकृतिक शून्य स्थानों में निवास करना। विमोचितावास-राजा आदि के द्वारा छुड़ाये हुए उजड़े गृहों में निवास करना । परोपरोधाकरण-अपने स्थान पर दूसरे के ठहर जाने पर रुकावट नहीं करना ।
SR No.090397
Book TitleRatnakarand Shravakachar
Original Sutra AuthorSamantbhadracharya
AuthorAadimati Mata
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages360
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size9 MB
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