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________________ २] रत्नकरण्ड श्रावकाचार टीकाकार आचार्य प्रभाचन्द्र टोका के आरम्भ में मङ्गलपूर्वक टीका करने की प्रतिज्ञा करते हुए कहते हैं-- ___ समन्तभद्रमिति- जो सब ओर से कल्याणों से युक्त हैं-अनन्त सृख से सहित है, समस्त जीवों को प्रतिबोधित करने वाले हैं, हितोपदेशी हैं अथवा समस्त पदार्थों के जाता पार्वता हैं, समस्त जानादरणादि कर्मों का भय करने वाले हैं-वीतरागी हैं ऐसे अरहन्त परमेष्ठी को प्रणाम कर मैं भव्य जीवों को प्रतिबोध को खानस्वरूप रत्नकरण्ड श्रावकाचार की उत्तम टीका करता हूं। जिस प्रकार रत्नों की रक्षा का उपायभूत करण्डक-पिटारा होता है और वह रत्नकरण्डक कहलाता है, उसी प्रकार सम्यग्दर्शनादि रत्नों की रक्षा का उपायभूत यह रत्नकरण्डक नामका शास्त्र है। इस शास्त्र की रचना करने के इच्छुक श्री समन्तभद्रस्वामी निर्विघ्नरूप से शास्त्र की परिसमाप्ति आदि फल को अभिलाषा रख कर इष्ट देवता विशेष-श्री वर्धमान स्वामो को नमस्कार करते हुए कहते हैं नमइति-(निळू तकलिलात्मने) जिनकी आत्मा ने कर्मरूप कलंक को नष्ट कर दिया है और जिनका केवलज्ञान (सालोकानां त्रिलोकानाम) अलोक सहित तीनों लोकों के विषय में दर्पण के समान आचरण करता है अर्थात् जो सर्वज्ञ हैं (तस्मै) उन (श्रोवर्धमानाय) अन्तिम तीर्थंकर श्री वर्धमानस्वामी को अथवा अनन्त चतुष्टयरूप लक्ष्मी से वृद्धि को प्राप्त होने वाले चौबीस तीर्थंकरों को (नमः) नमस्कार करता हूँ। . टीकार्थ-ग्रहाँ वर्धमान शब्द के दो अर्थ किये हैं-एक तो अन्तिम तीर्थंकर वर्धमान स्वामी और दूसरा वृषभा दि चौबीस तीर्थंकरों का समुदाय । प्रथम अर्थ तो वर्धमान अन्तिम तीर्थकर प्रसिद्ध ही है और द्वितीय अर्थ में वर्धमान शब्द की व्याख्या इस प्रकार है-'अव समन्ताद ऋद्ध परमातिशयप्राप्त मानं फेवलज्ञानं यस्यासो' जिनका केवलज्ञान सब ओर से परम अतिशय को प्राप्त है। इस प्रकार इस अर्थ में वर्धमान शब्द सिद्ध होता है। किन्तु 'अवाप्योरल्लोपः' इस सूत्र से अब और अपि उपसर्ग के अकार का विकल्प से लोप होता है-व्याकरण के इस नियमानुसार 'अव' उपसर्ग के अकार का लोप हो जाने से वर्धमान शब्द सिद्ध हो जाता है। श्रिया-श्री का अर्थ लक्ष्मी होता है । लक्ष्मी भी अन्तरंग लक्ष्मी और बहिरंग लक्ष्मी इस प्रकार दो भेद रूप है। समवसरणरूप लक्ष्मी बहिरंग लक्ष्मी है और अनन्त चतुष्टयरूप अन्तरंग
SR No.090397
Book TitleRatnakarand Shravakachar
Original Sutra AuthorSamantbhadracharya
AuthorAadimati Mata
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages360
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size9 MB
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