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________________ रत्नकरण्ड श्रावकाचार [ १४९ विशेषार्थ - उमास्वामी आचार्य ने असत्य का लक्षण - 1 -'असदभिधानमनृतम' कहा है । अर्थात् अविद्यमान पदार्थों का कथन करना असत्य है । जैसे- देवदत्त के नहीं होने पर भी कहना कि देवदत्त है । प्राचार्य हेमचन्द ने अपने योगशास्त्र में असत्य पांच प्रकार के कहे हैं- कन्याअलीक, गोअलीक, भूमिअलीक, कूटसाक्ष्य और न्यासापलाप । तदनुसार पं० श्राशाधरजो ने भी इन पाँच स्थूल अलीकों को छोड़ने वाले को सत्याणुव्रती कहा है । कन्या के विषय में झूठ बोलना कन्यालीक है। जिस प्रकार शादी-विवाह के समय माता-पिता अपनी सदोष कन्या को निर्दोष कहते हैं। या विरोधीजन निर्दोष कन्या को दोष कहते हैं। गाय के विषय में झूठ बोलना गो- अलीक है । जैसे- थोड़ा दूध देने वाली को बहुत दूध देने वाली कहना और बहुत दूध देने वाली को थोड़ा दूध देने वाली कहना । भूमि के सम्बन्ध में झूठ बोलना क्ष्मालीक है । जैसे दूसरों की भूमि को अपनी बताना और कारणवश अपनी भूमि को दूसरों की बताना । इत्यादि । यहाँ कन्यालीक में सब दोपाये और गोअलीक में सब चौपाये और क्ष्मालीक में सब बिना पैर की वस्तुएँ ली गयी हैं, तो इन असत्यों को कन्यालीक, गोअलीक और क्ष्माअलीक नाम क्यों दिया ? द्विपदअलीक आदि नाम क्यों नहीं दिया ? इसका समाधान यह है कि लोक में कन्या, गाय और भूमि के सम्बन्ध में झूठ बोलने को अतिनिन्दनीय माना जाता है । अतः लोकविरुद्ध होने से ये तीनों झूठ नहीं बोलने चाहिए । घूस के लालच से या ईष्यविश झूठी बात को सच और सच्ची बात को झूठ कहना कि मैंने ऐसा देखा, मैं इसका साक्षी हूँ, यह कूटसाक्ष्य है इसके द्वारा दूसरे के पाप का समर्थन होता है, अतः यह पहले के तीन झूठों से भिन्न है, धर्म का विरोधी है, इसलिए नहीं बोलना चाहिए | अज्ञान और संशय में भी झूठ नहीं बोलना चाहिए, तो राग-द्वेष से झूठ बोलने की तो बात ही क्या है । यह पं० आशाधरजी ने सत्याणुव्रत का स्वरूप कहा है । दिगम्बर परम्परा के श्रावकाचारों में इस तरह का लक्षण, जिसमें कुछ असत्यों का नाम लिया है, नहीं मिलता । सबने स्थूल असत्य या उसके भेदों के त्याग को सत्याणुव्रत कहा है । यथा - प्रमृतचन्द्राचार्य ने तत्त्वार्थसूत्र के अनुसार असत् कथन को झूठ कहा है | और उसके चार भेद कहे हैं-सत् का निषेध करना । यथा - देवदत्त के घर में होते हुए भी कहना कि वह घर में नहीं है । असत् का विधान, जो नहीं है उसे कहना कि है । तीसरा - अन्य को अन्य कहना, जैसे बैल को घोड़ा बतलाना । चौथागहित, पाप सहित और अप्रियवचन बोलना । इन सबका त्याग सत्याणुव्रत है । I
SR No.090397
Book TitleRatnakarand Shravakachar
Original Sutra AuthorSamantbhadracharya
AuthorAadimati Mata
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages360
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size9 MB
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