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रत्नकरण्ड श्रावकाचार व्यक्ति इस प्रकार की अपनी प्रवृत्ति से हिंसा से बच सकता है, इसलिए अहिंसावत की रक्षा के लिए इस प्रकार का विचार करके हिंसा न हो, ऐसी प्रवृत्ति करनी चाहिए ।। ८ ।। ५४ ॥
एवमहिसाणुव्रतं प्रतिपाझेदानीमनुतविरत्यणुव्रतं प्रतिपादयन्नाहस्थूलमलीकं न वदति न परान् वावयति सत्यमपि विपढे। यत्तद्वदन्ति सन्तः स्थूलमुषावावं वैरमणम् ॥ 1011
'स्थूलमषाबादबरमणम्' स्थूलश्चासौ मृषावादश्च तस्माद्वैरमणं विरमणमेव वैरमणं । 'तद्वदन्ति' । के ते ? 'सन्तः' सत्पुरुषाः गणधरदेवादयः । तत्कि, सन्तो यन्न बदन्ति । 'अलीकम्' असत्यं । कथंभूतं ? 'स्थूलं' यस्मिन्नुक्ते स्वपरयोर्वधबन्धादिकं राजादिभ्यो भवति तत्स्वयं तावन्त वदति । तथा 'परान्' अन्यान् तथाविधमलीकं न बादयति । न केवलमलीकं किन्तु 'सत्यमपि चोरोऽयमित्यादिरूपं न स्वयं वदति न परान यासति । विहिं गत 'दाला पि' परस्य 'विपदे' उपकाराय भवति ॥६॥
इस प्रकार अहिंसाणुव्रत का प्रतिपादन कर अब सत्याणुव्रत का प्रतिपादन करते हुए कहते हैं
(यत्) जो (स्थूलं) स्थूल (अलीक) झूठ को (न वदति) न स्वयं बोलता है ( न परान्वादयति ) न दूसरों से बुलवाता है और ऐसा ( सत्यमपि ) सत्य भी न स्वयं बोलता है न दूसरों से बुलवाता है जो ( विपदे ) दूसरे के प्राणघात के लिये हो ( तत् ) उसे (सन्तः) सत्पुरुष ( स्थूलमृषावादवैरमणं ) स्थूल झूठ का त्याग अर्थात् सत्याणुव्रत (वदन्ति) कहते हैं ।
टोकार्थ—'विरमणमेव वरमणम्' इस व्युत्पत्ति के अनुसार बैरमण' शब्द में स्वार्थ में अण् प्रत्यय हुआ है । इसलिए जो अर्थ विरमण शब्द का होता है, वही वैरमण शब्द का अर्थ है ! 'स्थूलं' का अर्थ यह है कि जिसके कहने से स्व और पर के लिए राज्यादिक से वध बन्धनादिक प्राप्त हों ऐसे स्थूल असत्य को जो न तो स्वयं बोलता है और न दूसरों को प्रेरित कर बुलवाता है । तथा ऐसा सत्य भी जैसे 'यह चोर है' इत्यादि, न स्वयं बोलता है न दूसरों से बुलवाता है, उसे सत्याणुव्रत कहते हैं।