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________________ रत्नकरण्ड श्रावकाचार [ १३५ दी है । जिस प्रकार अन्धकार में नेत्र से देखने की शक्ति नष्ट हो जाती है, उसी प्रकार मिथ्यात्व के उदय से जीव की दर्शनशक्ति - समीचीन श्रद्धान करने रूप शक्ति सामर्थ्य प्रकट नहीं हो सकती । किन्तु जैसे ही मिथ्या अन्धकार दूर होकर समीचीन श्रद्धान प्रकट होता है तब उसे सही दिशा का बोध होता है । पर पदार्थों में जो एकत्वभाव चल रहा था वह नष्ट होकर स्व-पर का सही श्रद्धान हो जाता है तब मिथ्याज्ञान सम्यग्ज्ञान हो जाता है और तत्पश्चात् राग-द्वेष को दूर करने के लिए समीचीन चारित्र की शरण लेता है । समीचीन चारित्र से ही जीव का कल्याण होता है || १ ||४७|| निवृत्ताने हिंसादिनिवृत्त: संभवादित्याह— रागद्वेषनिवृत्त हिंसादि निवर्त्तना कृता भवति । अनपेक्षितार्थवृत्तिः कः पुरुषः सेवते नृपतीन् ॥ २ ॥ 'हिंसादे: निवर्तना' व्यावृत्तिः कृता भवति । कुत: ? 'रागद्वेषनिवृत्त ेः । अयमत्र तात्पर्यार्थः — प्रवृत्तरागादिक्षयोपशमादेः हिंसादिनिवृत्ति लक्षणं चारित्रं भवति । ततो भाविरागादिनिवृत्त रेवं प्रकृष्टतरप्रकृष्टतमत्वात् हिंसादि निवर्तते । देशसंयतादिगुणस्थाने रागादिहिंसादिनिवृत्तिस्तावद्वर्तते यावन्निःशेषरागादिप्रक्षयः तस्माच्च निःशेषहिंसादि निवृत्तिलक्षणं परमोदासीनतास्वरूपं परमोत्कृष्टचारित्रं भवतोति । अस्यैवार्थस्य समर्थनार्थमर्थान्तरन्यासमाह - 'अनपेक्षितार्थवृत्तिः कः पुरुषः सेवते नृपतीन्' अनपेक्षितानभिलषिता अर्थस्य प्रयोजनस्य फलस्य वृत्तिः प्राप्तिर्येन स तथाविधः पुरुषः को, न कोऽपि प्रेक्षापूर्वकारी, सेवते नृपतीन् ||२|| आगे रागद्वेष की निवृत्ति होने पर ही हिंसादि पापों से निवृत्ति हो सकती है, यह कहते हैं— ( रागद्वेष निवृत्ती : ) रागद्वेष की निवृत्ति होने से ( हिंसादिनिवर्तना) हिंसादि पापों से निवृत्ति ( कृता भवति ) स्वयमेव हो जाती है क्योंकि ( अनपेक्षितार्थवृत्तिः ) जिसे किसी प्रयोजनरूप फल की प्राप्ति अभिलषित नहीं है, ऐसा ( कः पुरुषः ) कौन पुरुष (नृपतीन् सेवते ) राजाओं की सेवा करता है ? अर्थात् कोई नहीं । टोकार्थ - रागद्वेष की निवृत्ति से हिंसादि पापों की निवृत्ति स्वतः हो जाती है । तात्पर्य यह है कि वर्तमान में जिन रागादि भावों की प्रवृत्ति है उनका क्षयोपशमादि
SR No.090397
Book TitleRatnakarand Shravakachar
Original Sutra AuthorSamantbhadracharya
AuthorAadimati Mata
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages360
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size9 MB
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