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________________ रत्नकरण्डे श्रावकाचार १३० ] त्रिलोकसार, त्रैलोक्यप्रज्ञप्ति, जीवकाण्ड, कर्मकाण्ड लोकविभाग आदि ग्रन्थ करणानुयोग के ग्रन्थ कहलाते हैं ।। ३।।४४।। तथा-- गहमेध्यनगाराणां चारित्रोत्पत्तिवृद्धिरक्षांगम् । चरणानुयोगसमयं सम्यग्ज्ञानं विजानाति ॥४॥ 'सम्यग्ज्ञानं' भावश्र तरूपं । 'विजानाति' विशेषेण जानाति । कं ? 'चरणानुयोगसमयं' चारित्रप्रतिपादक शास्त्रमाचाराङ्गादि । कथंभूतं ? 'चारित्रोत्पत्तिवृद्धिरक्षाङ्गम्' चारित्रस्योत्पत्तिश्च वृद्धिश्च रक्षा च तासामङ्ग कारणं अंगानि वा कारणानि प्ररूप्यन्ते यत्र । केषां तदङ्ग ? 'गृहमेध्यनगाराणा' गृहमेधिनः श्रावकाः अनगारा मुनयस्तेषां ।। ४ ।। अब चरणानुयोग का लक्षण कहते हैं ( सम्यग्ज्ञानं ) भाव तरूप सम्यग्ज्ञान ( गृहमेध्यनगाराणां ) गृहस्थ और मुनियों के (चारित्रोत्पत्तिवृद्धिरक्षांग) चारित्र की उत्पत्ति वृद्धि और रक्षा के कारणभूत (चरणानुयोगसमयं) चरणानुयोग शास्त्र को (विजानाति) जानता है। टोकार्य – सम्यग्ज्ञान चरणानुयोग को भी जानता है । चारित्र का प्रतिपादन करने वाले आचारांग आदि शास्त्र चरणानुयोग शास्त्र कहलाते हैं। इन शास्त्रों में गहस्थ-श्रावक और मुनियों के चारित्र की उत्पत्ति, वृद्धि और रक्षा के कारणों का विशद वर्णन है । समीचीन व तज्ञान इन सब शास्त्रों को विशेषरूप से जानता है । विशेषण-'आचरंति-मोक्षमार्गमाराधयन्ति अस्मिन्ननेनेति वा आचारः, जिसमें गृहस्थ और मुनियों के चारित्र का वर्णन पाया जाता है उसे चरणानुयोग कहते हैं । गृहस्थ और मुनियों के चारित्र की उत्पत्ति किस प्रकार होती है, चारित्र की वद्धि कसे होती है, तथा चारित्र रक्षण के बया उपाय हैं, इन सभी का निरूपण जिस में होता है उसे चरणानुयोग शास्त्र कहते हैं । प्रथम प्राचारांग में-किस तरह आचरण करें ? किस तरह खड़े हो ? किस तरह बैठे ? किस तरह शयन करें ? किस तरह भाषण करें ? किस तरह भोजन करें ? जिससे कि पाप का बन्धन हो । अर्थात् किस तरह से इन क्रियाओं के तथा
SR No.090397
Book TitleRatnakarand Shravakachar
Original Sutra AuthorSamantbhadracharya
AuthorAadimati Mata
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages360
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size9 MB
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