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रस्नकरण्ड श्रावकाचार
[ १२३ होती तब तक उसको संसार में इस तरह के पद भी प्राप्त होते रहते हैं। फिर - भो यह नियम नहीं है कि वह इन पदों को प्राप्त करे ही। अन्त में तो ये अनन्तकाल
के लिए संसार का परित्याग कर ध्र व, अचल, अनुपम, शाश्वत शिवस्वरूप सिद्धावस्था को प्राप्त कर लेते हैं। जैसे कि-तीर्थकर भगवान शान्तिनाथ, कुन्थुनाथ, अरनाथ तीर्थकर चक्रवर्ती और कामदेव पदों को भोगकर एक साथ सबका परित्याग कर परमोत्कृष्ट मोक्षपुरुषार्थ को सिद्ध करके शिवस्वरूप हो गये ।।४१।।
इस प्रकार समन्तभद्रस्वामिविरचित उपासकाध्ययन की प्रभाचन्द्र विरचित
टोका में प्रथम (सम्यग्दर्शन अधिकार) पूर्ण हुआ ।