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________________ १०४ ] रत्नकरण्ड श्रावकाचार आचरण से प्रयोजन उसके शरीर की उत्पत्ति के सम्बन्ध को लेकर मातृपक्ष और पितृपक्ष की शुद्धि से है। इन दोनों के असदाचरण के कारण परंपरा दूषित होती है। देव सभी उच्च गोत्री होते हैं, फिर भी सम्यक्त्व सहित जीव भवनवासी व्यन्तर और ज्योतिषियों में उत्पन्न नहीं होते, एकेन्द्रिय विकलेन्द्रिय एवं असंक्षियों में उत्पन्न नहीं होते । सम्यक्त्व सहित जीव मनुष्यगति में उत्तमकुल में उत्पन्न होकर भी हीनांग विकलांग नहीं होते, अल्पायु, दरिद्री नहीं होते । कारिका में जो अपि शब्द दिया है वह इस अर्थ को सूचित करता है कि बिना व्रत के केवल अत्रत सम्यग्दृष्टि के जब इतनो विशेषता हो जाती है तब व्रतधारी तो सहज ही संसार को निर्मूल करने में समर्थ हो ही सकता है। सम्यग्दर्शन के होने पर ४१ कर्म प्रकृतियों का बंध छूट जाता है। मिथ्यात्व गुणस्थान में विच्छिन्न होने वाली १६ प्रकृतियाँ-मिथ्यात्व, हुंडकसंस्थान, नपुसकवेद, असंप्राप्तासपाटिका संहनन, एकेन्द्रियजाति, विकलत्रयतीन, स्थावर, आतप, सूक्ष्म, अपर्याप्त, साधारण, नरकगति, नरकगत्यानुपूर्वी, नरकायु । इसी प्रकार दूसरे गुणस्थान में बन्धव्युच्छित्ति होने वाली २५ प्रकृतियाँ हैंअनन्तानुबन्धी क्रोध, मान, माया, लोभ, स्त्यानगृद्धि, निद्रानिद्रा, प्रचलाप्रचला, दुर्भग, दुःस्वर, अनादेय, न्यग्रोधपरिमण्डल संस्थान, स्वाति संस्थान, कुब्जक संस्थान, वामन संस्थान, वज्रनाराचसंहनन, नाराचसंहनन, अर्धनाराचसंहनन, कीलकसंहनन, अप्रशस्तविहायोगति, स्त्रीवेद, नीचगोत्र, तियंचगति, तिर्यंचगत्यानुपूर्वी, तिर्यंचायुउद्योत । इस प्रकार जो अबद्धायुष्कसम्यग्दृष्टि हैं वे नरक और तिर्यंच गति में तो उत्पन्न होते ही नहीं। किन्तु जो सम्यग्दृष्टि स्वर्ग से आकर कर्मभूमिया में उत्पन्न होते हैं तो वे नपुसक, स्त्री, नीच कुल, विकृतांग, अल्पायु, दरिद्र नहीं होते। तथा जो बद्घायुष्क हैं वे भी यथायोग्य इन बन्धव्युच्छित्ति के अनुसार निकृष्ट स्थानों को प्राप्त नहीं होते ।। ३५॥ यद्येतत्सर्वं न ब्रजन्ति तहि भवान्तरे कीदृशास्ते भवन्तीत्याह ओजस्तेजोविद्यावीर्य्ययशोवृद्धिविजयविभवसनाथाः । माहाकुला महार्था मानवतिलकाः भवन्ति दर्शनपूताः ॥३६॥
SR No.090397
Book TitleRatnakarand Shravakachar
Original Sutra AuthorSamantbhadracharya
AuthorAadimati Mata
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages360
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size9 MB
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