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________________ १०२ ] रत्नकरण्ड श्रावकाचार इतोऽपि सद्दर्शनमेव ज्ञानचारित्राभ्यामुत्कृष्ट मित्याहसम्यग्दर्शनशुद्धा नारकतिर्यङ नपुसकस्त्रीत्वानि । दुष्कुलविकृताल्पायुर्दरिद्रतां च अजन्ति नाप्यातिकाः ॥३५॥ 'सम्यग्दर्शनशुद्धा' सम्यग्दर्शनं शुद्ध निर्मलं येषां ते । सम्यग्दर्शनलाभात्पूर्व बद्धायुष्कान् विहाय अन्ये 'न व्रजन्ति' न प्राप्नुवन्ति । कानि । नारकतिर्यङनपुसकस्त्रीत्वानि । त्व शब्द: प्रत्येकमभिसम्बध्यते नारकत्वं तिर्यक्त्वं नपुसकत्वं स्त्रीत्वमिति । न केवलमेतान्येव न व्रजन्ति किन्तु 'दुष्कुलविकृताल्पायुर्दरिद्रतां च'। अत्रापि ता शब्दः प्रत्येकमभिसम्बध्यने ये निर्मलसम्यक्त्वाः ते न भवान्तरे दुष्कुलतां दुष्कुले उत्पत्ति विकृततां काणकुण्ठादिरूपविकारं अल्पायुष्कतामन्तर्मुहूर्ताद्यायुष्कोत्पत्ति, दरिद्रतां दारिद्रयोपेतकुलोत्पत्ति । कथंभूता अपि एतत्सर्वं व्रजन्ति ? 'अवतिका अपि' अणवतसीहता अपि ।। २५ ।। आगे कुछ और भी कारण बतलाते हैं जिनसे सम्यग्दर्शन ही ज्ञान और चारित्र की अपेक्षा उत्कृष्ट है (सम्यग्दर्शनशुद्धाः) सम्यग्दर्शन से शुद्ध जीव (अनतिकाअपि) व्रतरहित होने पर भी ( नारकतियङ नपुसकरत्रीत्वानि ) नारक, तियंच, नपुसक और स्त्रीपने को (च) तथा (दुष्कुलविकृताल्पायुर्दरिद्रतां) नीच कुल विकलांग अवस्था, अल्प आयु और दरिद्रता को (न व्रजन्ति) प्राप्त नहीं होते। टोकार्थ--'सम्यग्दर्शनेन शुद्धाः सम्यग्दर्शन शुद्धाः' अथवा 'सम्यग्दर्शनं शुद्धं निर्मलं येषां ते सम्यग्दर्शनशुद्धाः' इस समास के अनुसार जो सम्यग्दर्शन से शुद्ध है अथवा जिनका सम्यग्दर्शन शुद्ध-निर्मल है ऐसे जीव, जिन्होंने सम्यग्दर्शन होने के पहले आय बांधली है उन बद्धायुष्कों को छोड़कर नारकत्व, तियंचत्व, नपुसकत्व और स्त्रीत्व को प्राप्त नहीं होते, तथा नीचकुलता, दुष्कुलता-दुष्कुल में उत्पत्ति, विकृतता-काणा, लूला आदि विकृतरूप बाला, अल्पायुष्कता-अन्तर्मुहूर्तादि अल्पआयु वाला, दरिद्रतादरिद्रकूल में भी उत्पत्ति नहीं होती है। जब व्रतरहित अवतसम्यग्दृष्टि का इतना माहात्म्य है तब सम्यग्दृष्टिदती तो सातिशय पुण्य का बन्ध करते ही हैं, उनकी महिमा का तो कहना ही क्या है ?
SR No.090397
Book TitleRatnakarand Shravakachar
Original Sutra AuthorSamantbhadracharya
AuthorAadimati Mata
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages360
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size9 MB
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