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________________ रत्नकरण्ड श्रावकाचार [ ८९ के कारण लोक में जातिहीन माना जाता है किन्तु उसका आत्मा सम्यग्दर्शन के अन्तस्तेज से प्रकाशमान होने से देवोपम कहा गया है। तथा उसको भस्म से छिपे हुए अंगारे के सदृश बतलाया है । जिस प्रकार भस्म से ढके अंगारे में अन्दर प्रकाश जाज्वल्यमान रहता है उसी प्रकार मातंग पुत्र भी शरीर की अपेक्षा हीन है परन्तु अन्तरंग में सम्यग्दर्शन के तेज से युक्त है । इस प्रकार शरीर तो महामलिन मल मूत्रादि से भरा हुआ है, शरीर के नवद्वारों से निरन्तर दुर्गन्ध युक्त मल झरता रहता है, ऐसा अपवित्र मलिन भी साधुओं का शरीर रत्नत्रय के प्रभाव से इन्द्रादिक देवों के द्वारा वन्दन स्तवन योग्य हो जाता है अतः गुणों को नमस्कार है, बिना गुणों के यह मलिन शरीर पूज्य नहीं बन सकता । जिस प्रकार अग्नि के तीन कार्य हैं - दाह, पाक और प्रकाश, उसी प्रकार आत्मा के सम्यग्दर्शन गुण में भी तीनों प्रकार का सामर्थ्य है- दाह, पाक और प्रकाश । आत्मविरोधी कर्मरूपी ईंधन को दाह - जलाता है । संसार स्थिति को पकाता है और ज्ञानादिक गुणों को प्रकाशित करता है । किन्तु तात्कालिक योग्यता सभी सम्यग्दर्शनों में नहीं पायी जाती । सम्यग्दर्शन उत्पन्न होने के पश्चात् अपने स्वामी को कम से कम अन्तर्मुहूर्त में अधिक से अधिक अर्धपुद्गल परिवर्तन प्रमाण काल में सिद्धि को प्राप्त करा देता है । सम्यग्दर्शन धर्म है, क्योंकि धर्म की व्याख्या करते हुए कहा गया है कि धर्म वह है जो जीव को संसार के दुःखों से छुड़ाकर उत्तम सुख-मोक्ष में पहुँचा दे । संसार और मोक्ष दोनों ही विरोधी तत्त्व हैं और उनके साधन भी परस्पर विरुद्ध हैं । जो मोक्ष का साधन है, वह संसार का साधन नहीं हो सकता तथा जो संसार कर साधन है वह मोक्ष का साधन नहीं हो सकता । सम्यग्दर्शन का कार्य पुण्य कर्मों में अतिशय प्राप्त करा देने का है। इतना ही नहीं किन्तु अनेक पुण्यकर्म तो ऐसे हैं जो सम्यग्दर्शन के बिना हो ही नहीं सकते, जैसे - तीर्थंकर आहारकद्विक, नवग्रैवेयक के ऊपर के देवों का पद आदि ||२८|| एकस्य धर्मस्य विविधं फलं प्रकाश्येदानीमुभयोर्ध मधिर्म योर्यथाक्रमं फलं दर्शयन्नाह---- श्यापि देवोsपि देवःश्वा जायते धर्मकिल्विषात् । कापि नाम भवेदन्या सम्पद्धर्माच्छरीरिणाम् ॥ २६ ॥
SR No.090397
Book TitleRatnakarand Shravakachar
Original Sutra AuthorSamantbhadracharya
AuthorAadimati Mata
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages360
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size9 MB
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