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________________ राजस्थान के जैन संत : व्यक्तित्व एवं कृतित्व विकारों के अधीन रहने पर मानव को मोक्ष की उपलब्धि नहीं हो सकती।" इसको पाठकों के समक्ष प्रस्तुत करना है। काम मोक्ष रूपी लक्ष्मी प्राप्त करने में बहुत बड़ी बाधा है, मोह, माया, राग एवं ₹ष काम के प्रबल सहायक हैं। वरान्त काम का दुस है, जो काम की विजय के लिए पृष्ठ भूमि बनाता है लेकिन मानव अनन्त शक्ति एवं ज्ञान वार है यदि वर नाले त सजिमा ५. दिशा मप्त कर सकता है। और इसी तरह भगवान ऋषभदेव भी अपने प्रात्मिक गुणों के द्वारा काम पर विजय प्राप्त करते हैं। कवि ने इस रूपक को बहुत ही सुन्दर रीति से प्रस्तुत किया है। वसन्त कामदेव का दूत होने के कारण उसकी विजय के लिये पहिले जाकर अपने अनुरूप वातावरण बनाता है। बसन्त के आगमन का बुक्ष एवं ललायें तक नव पुष्पों से उसका स्वागत करती हैं। कोयल कुहू कुहू की रट लगा कर, एवं भ्रमर पंक्ति गुन्जार करती हुई उसके आगमन की सूचना देती है। युवतियां अपने श्रापको सज्जित करके भ्रमण करती है । इसी वर्णन को कधि के शब्दों में पढ़िए.... बज्यउ नीसाण पसंत आपउ, छल्लकुद सिखिल्लिंयं । सुगंध मलया पवण भुल्लिय, अनं कोइल्ल कुल्लिय।। हरण झुरिणय केवइ कलिय महुवर, सुप्तर पत्तिह छाइयं । गावति गीय वनि वीणा, तकरिंग पाइक प्राइयं ।।। जिन्ह कंडिल केस कलाव, कुतिल मग मुसिय धारिय । जिन्ह वीण भवयंग लगति चंदन गुथि कुमुमणा वारियं । जिन्ह भवह धुणहर बनिय समुहर नवरण बाण चडाइयं । गायत गीय वजंति बीमा, तरुणि पाइक श्राध्यं ॥३८॥ मदन (कामदेव) भी ऐसा वैसा योद्धा नहीं जो शीघ्र ही अपनी पराजय स्वीकार करले, पहिले वह अपने प्रतिपक्षियों की शक्ति परीक्षा करता है और इसके लिए अपने प्रधान सहायक मोह को भेजता है। वह अपने विरोधियों के मन में विकार उत्पन्न करता है। मोह चस्लिउ साथि कलिकालु। जह हुतउ मदन मटु, तमु जाद् कुमनु कीयउ । गढ़ विषमउ धम्मु पुरू, तहसु सधनु संबूहि लिंघउ । दोनउ चल्ले पंज करि, गम्य बरयउ मन मंगहि । पवन सबल जब उछलाहिं, घरा कर केव रहाहि ।।८७॥
SR No.090391
Book TitleRajasthan ke Jain Sant Vyaktitva evam Krititva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal
PublisherGendilal Shah Jaipur
Publication Year
Total Pages322
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & History
File Size5 MB
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