SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 97
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ग्रह वृचराज P . इन्होंने अपनी कृतियों में बुचराज के अतिरिक्त बूचा, वल्ह, बील्ह अथवा बल्ब नामों का उपयोग किया है। एक ही कृति में दोनों प्रकार के नाम प्रयोग में प्राये हैं | इनको रचनाओं के आधार से यह कहा जा सकता है कि वृचराज का व्यक्तित्व एवं मनोबल बहुत ही ऊंचा था । उन्होंने अपनी रचनाएँ या तो भक्ति एवं स्तवन पर श्राधारित की है अथवा उपदेश परक है जिसमें मानव मात्र को कामवासना पर विजय प्राप्त करने तथा सन्तोष पूर्वक जीवन यापन करने का उपदेश दिया गया है। समय ७१ कविवर के समय के बारे में निश्चित तो कुछ भी नहीं कहा जा सकता लेकिन इनकी रचनाओं के आधार पर इनका समय संवत् १५३० से १६०० तक का माना जा सकता है । इस तरह उन्होंने अपने जीवन काल में भट्टारक भुवन कीर्ति, ज्ञानभूषण एवं विजयकोसि का समय देखा होगा तथा इनके सानिध्य में रहकर बहुत कुछ सीखने का अवसर भी प्राप्त किया होगा। ऐसा लगता है कि ये ग्रहस्थावस्था के पश्चात् संवत् १५०५ के आस पास ब्रह्मचारी बने होंगे तथा उसी के पश्चात् इनका ध्यान साहित्य रचना की ओर गया होगा । 'भया जुज्भ्' इनकी प्रथम रचना है जिसमें इन्होंने भगवान आदिनाथ द्वारा कामदेव पर विजय प्राप्त करने के रूप में संभवत: स्वयं के जीवन का भी उदाहरण प्रस्तुत किया है। कवि की अभी तक जिन रचनाओं को खोज की जा सकी है वे निम् प्रकार हैं । १. ममरणजुज्झ ( मदनयुद्ध ) २. संतोष जयतिलक ३. चेतन पुद्गल धमाल ४. टंडारणा गीत ५. नेमिनाथ वसंतु ६. नेमीश्वर का बारहमासा ७. ८. विभिन्न रागों में लिखे हुए ८ पद विजयकीत्ति गीत १. मघणडुज्झ यह एक रूपक काव्य' है जिसमें भगवान् ऋषभदेव द्वारा कामदेव पराजय का वर्णन है । यह एक आध्यात्मिक रूपक काव्य है, जिसका प्रमुख उद्देश्य "मनो W १. साहित्य शोध विभाग, महावीर भवन जयपुर के एक गुटके में इसको एक प्रति संग्रहीत है।
SR No.090391
Book TitleRajasthan ke Jain Sant Vyaktitva evam Krititva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal
PublisherGendilal Shah Jaipur
Publication Year
Total Pages322
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & History
File Size5 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy