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________________ आचार्य सोमकीर्ति गुरू केरा वा वीक अनि मनि आणी त्रक्रिया जे नर गाई, ते स्वगं सुगति पंथ बाइ || सहीए त्रिपन किरिया पालु, पाप मिष्यातज टालु || ५. ऋषमा की धूल इसमें ४ ढाल हैं, जिनमें प्रथम तीर्थंकर ऋषभदेव के संक्षिप्त जीवन कथा पर प्रकाश डाला गया है। भाषा पूरे रूप में जन भाषा है । प्रथम ढाल को पविये.. प्रणमवि जिगर पाउ, तु गुइ त्रिहु भवन नुए । समरवि सरसति देव तु सेवा सुरनर करिए || गाइनु आदि जिणंद आरद प्रति उपजिए । कौशल देश मशार तु सुसार गुगा बागलु नाभि नरिद सुरिद जसु सुरपुर वराए ""मुरा देवी नाम अनि सुरंग रंगा जिसी ए राउ रागी सुख सेजि सुजाइ नितु रमिए । प्रदेश सुप्रास सुर किन्यकाएं। केवि सिर छत्र भरति करति केवि धूपगाएं । hfa जगट के अगि सुचंगि, पूजा घणीए केवि अमर बहू मंगि श्राभंगीय श्रावहिए । केवि सयन अनि आसन भोजन विधि करिए | फेवि खडग घरी हाथि सौ साल नितु फरिए । मुरा देवि भगत चिकाजि सुलाज न मनि धरिए । तू जया करि सवि वेषु तु मामन परिहरिए । गरम सोबकरि भाष तु गाइ सुत्र जिन ताए । यरस अहूए कोटि कर दि सो व्रण तरणीए । दिव दिन नाभि निवारो एक दिवस मुरां देवी । पुढीय तेज समाधि सु वा दुःखीए । जक्षणीए । को आसा । तिमि कारण तुझ पर कमलो सरण पथवउ हेव, राखि क्रिया करे महरोय राज कि केव । सव विधि जिस परिसंपतिए अहनिशि जपतां नाम । आदि तीर्थ कर आदिगुरु आदिनाथ आदिदेव । श्री सोमकीत्ति मुनिवर भणित् भवि मंत्रि तुझ पाय से || - आदिनाथ बोनति
SR No.090391
Book TitleRajasthan ke Jain Sant Vyaktitva evam Krititva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal
PublisherGendilal Shah Jaipur
Publication Year
Total Pages322
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & History
File Size5 MB
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