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राजस्थान के जैन संत-व्यक्तित्व एवं कृतित्व
कोइल करई टहुकडाए, मधुकर झंकार फूली। . जातज वृक्ष सरणीये बनाह मझार वनं देखी मुनिराज मणि। इहो नहीं मुझ काज ब्रह्मचार प्रतिवर रहिनु आदि लाज ।
राजा यशोधर ने बाल्यावस्था में कौन-कौन से मयों का अध्ययन किय :इसका एक वर्णन पहिये---
राप्रति तव मह कह , सुरुज नरसर आज । पंडित जेहु भणावीउ, कीधो लुजे मुझ काज ॥ वृत्तनि काय्य अलंकार, तक्क सिद्धान्तं पमाण। भरहनइ छदसु पिंगल, नाटक ग्रंथ पुराण || आगम मोतिष वेदक ह्य नर पसुयनु जेह । चैत्य चत्याला गेहनी गढ़ मढ़ करवानी तेन्न ।। . माही माहि विरोधीइ, रूठा मनावी जैम ।।
कागल पत्र समाचरी, रसोयनी पाई. केम ... . .:. :: .. · इन्भजल रस भेद जे जूय नइ भूभनु कम । ....................
पाप निवारण वादन नत्तन नाछि जे मर्म ||
कयि के समय में एक विद्वान के लिए किन नथों का अध्ययन प्रावश्यक था, वह इस वर्णन रो स्पष्ट हो.. जाता है। "
_ 'यशोधर रास की. भाषा राजस्थानी है, जिसमें कहीं कहीं गुरुराती के शब्दों का भी प्रयोग हुआ है । वर्णन शेली की दृष्टि से रचना मद्यपि साधारण है लेकिन यह उस समय की रचना है, जबकि सूरदास, मीरां एवं तुलसीदास जैसे कवि साहित्याकाश में मंडरा भी नहीं थे। ऐसी अवस्था में हिन्दी भाषा के अध्ययन की दृष्टि से रचना उत्तम है एबं साहित्य के इतिहास में उल्लेखनीय है । १६ वीं शताब्दि की इतनी प्राचीन रचना इतने अच्छे ढंग से लिखी हुई बहुत कम मिलेंगी। ३. आदिनाप बिनती . . यह एक लघु स्तवन है १ जिसमें 'आदिनाथ' का यशोमान गाया गया है। यह स्तवन मणवा के शास्त्र भन्डार के एक गुटके में संग्रहीत है। ५. पन क्रियागीत
. श्रावकों के पालने योग्य वेपन क्रियानों को इस गीत में विशेषता वणित की गई है । अन्तिम पद्य देखिए