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________________ मामा के संपार करक एवं कृतित्व उक्ति कृति नगवां (राजस्थान) के शास्त्र भण्डार के एम. फुटके में से संग्रहीत है । गुटका त्र. यशोषर द्वारा लिखित है। ब्र. यशोधर भ. सोमकीति के प्रमुख शिष्य थे। मूल्यांकन सौमकीप्ति' ने संस्कृत एवं हिन्दी साहित्य के माध्यम से जगत् को अहिंसा का सन्देश दिया । यही कारण है कि इन्होंने संशोधर के जीवन को दोनों भाषाओं में निबद्ध किया । भक्तिकाव्य के लेखन में इनकी विशेष रुचि थी। इसीलिए इन्होंने 'ऋषमनाप को धूल' एवं 'प्रादिनाप-विनती' की रचना की थी। इनके प्रभी मौर भी पद मिलने चाहिए । सोमकीर्ति की इतिहास-कृतियों में भी रुचि थी। गुर्वावलि इसका प्रत्यक्ष उदाहरण है । पीह रचना अनामार्यो एवं भट्टारकों की विलुप्त कड़ी को मोड़ने वाली है। कधि ने अपनी पूतियों में राजस्थानी भाषा का प्रयोग किया है । ब्रह्म जिनदास के समान उसकी रचनामी में गुजराती भाषी के पात्रों का इतना अधिक प्रयोग नहीं हो सका है। यही नहीं इनकी भाषा में सरलता एवं लश्कीलापन है। छन्दों के दृष्टि से भी बह राजस्थानी के अधिक निकट है। झवि को दृष्टि से वही राज्य एवं उसके ग्राम, नगरं श्रेष्ठ माने जाने चाहिए, जिनमें जीव बंध नहीं होता है, संस्थाचरण किया जाता हो तथा नारी समाज का जहां अत्यधिक सम्मान हो । यही नहीं, जहां के लोग अपने परिग्रह-संचय की सीमा भी प्रतिदिन निर्धारित करते हों और जहां रात्रि को भोजन करना भी वर्जित हो? वास्तव में इन सभी सिद्धान्तों को कवि ने अपने जीवन में उतार कर फिर उनका व्यवहार जनता द्वारा सम्पादित कराया जाना चाहा था। सोमक्रोत्ति' में अपने दोनों काव्यों में 'जनदर्शन' के प्रमुख सिमान्त 'हिसा' एवं "अनेकान्तवाद' का भी अच्छा प्रनिपादन किया है। नारी समाज के प्रति कवि के अच्छे विचार नहीं थे । 'यशोघर रास ' में स्वयं महारानी ने जिस प्रकार का आचरण किया और अपने रूपवान पति को धोखा देकर एक कोड़ी के पास जाना उचित समझा तो इस घटना से कवि को नारी-समाज को कलंकित करने का अवसर मिल गया और उसने अपने रास में निम्न शब्दों में उसकी भत्सना की १. धर्म अहिसा मनि घरी ए मा, बोलि मडिय सालि। पोरीय मात तुमो करे से मा, परनारि सहि टाली । परिगह संख्या नितु करे ए, गुरुवाणि सवापालि ।।
SR No.090391
Book TitleRajasthan ke Jain Sant Vyaktitva evam Krititva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal
PublisherGendilal Shah Jaipur
Publication Year
Total Pages322
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & History
File Size5 MB
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