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प्रकाशकीय
"राजस्थान के जन संत-व्यक्तित्व एवं कृतित्व" पुस्तक को गाटवों के हाथ में देते हुए गृझे प्रसन्नता हो रही है । पुस्तक में राजस्थान में होने वाले जन सन्तों का [ संवत् १४५० से १७५० तक ] विस्तृत अध्ययन प्रस्तुत किया गया है। वैसे तो राजस्थान मैकड़ों जैन सन्तों की पावन भूमि रहा है लेकिन १५ वीं शताब्दी से १. यो सताब्दी का यह मट्टारकों को प्रत्यधिक जोर रहा पौर समाज के प्रत्येक धार्मिक, सांस्कृतिक एवं साहित्यिक कार्यों में उनका निर्देशन प्राप्त होता रहा । इन सन्तों ने साहित्य निर्माण एवं उसकी सुरक्षा में जो महत्वपूर्ण योग दिया था उसका अभी तक कोई क्रमबद्ध इतिहास नहीं मिलता था इसलिये इन सन्तो के जीवन एवं साहित्य निर्माण पर किसी एक पुस्तक की आवश्यकता अनुभव को जा रही थी। डॉ० कस्तूरचन्द कासलीवाल के द्वारा लिखित इस पुस्तक से यह कमी दूर हो सकेगी, ऐसा हमारा विश्वास है ।
प्रस्तुत पुस्तक क्षेत्र के साहित्य शोष विभाग का १४ वां प्रकाशन है। गत दो वर्षों में क्षेत्र की ओर से प्रस्तुत पुस्तक सहित निम्न पांच पुस्तकों का प्रकाशन किया गया है।
(१) हिन्दी पद संग्रह, (२) चम्याशतफ, (३) जिरणदस चरित, (४) राजस्थान के जैन ग्रन्थ भंडार (अंग्रेजी में) और (५) राजस्थान के जैन संत-व्यक्तित्व एवं कृतित्व । इन पुस्तकों के प्रकाशन का देश के प्रमुख पत्रों एवं साहित्यकारों ने स्वागत किया है । इनके प्रकाशन से जैन साहित्य पर रिसर्च करने वाले विद्याथियों को विशेष लाभ होगा तथा जन साधारण को जैन साहित्य की विशालता, प्राचीनता एवं पयोगिता का पता भी लग सकेगा ।