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________________ ब्रह्मजिनदास 'पं० परमानन्दजी शास्त्री' ने भी इन्हें भट्टारक राकलकीर्ति को कनिष्ठ भ्राता स्वीकार किया है। उनके अनुसार इनका जन्म सं० १४४३ के बाद होना चाहिए: क्योंकि इसी संवत् में भ० सकलकीति का जन्म हुआ था। इनकी माता का नाम 'शोभा' एवं पिता का नाम 'कर सिंह' था। ये पाटा के रहने वाले तथा बड़ जाति के श्रावक थे । घर के काफी समृद्ध थे। लेकिन भोग-विलास एवं धन-सम्पदा इन्हें साधु-जीवन धारण करने से न रोक सकी। और इन्होंने भी अपने भाई के मार्ग का अनुसरण किया। भ० सकलकोत्ति' ने इन्हीं के आग्रह से ही संवत् १४८१ में बड़ली नगर में 'मूलाचार प्रदीप' की रचना की थी।' समय :- 'ब्रह्मजिनदास' ने अपनी दो रचनाओं को छोड़कर शेष किसी भी रचना में समय नहीं दिया है। ये दो रचनाएँ 'रामराज्य राम' एवं 'हरिवंश पुराण' हैं। जिनमें संवत् क्रमशः १५०८ तथा १५२० दिया हुआ है। 'भट्टारक सकलकीर्ति' के कनिष्ठ भ्राता होने के कारण इनका जन्म संवत् १४४५ से पूर्व तो सम्भव नहीं है। इसी तरह यदि हरिवंश पुराण को इनकी अन्तिम कृति मान ली जाने तो इनका समय संवत् १४४५ से संवत् १५२५ का माना जा सकता है | शिष्य परिवार:- ब्रह्मचारीजी की अमात्र विद्वत्ता से सभी प्रभावित थे । वे स्वयं विद्यार्थियों को पढ़ाते थे और उन्हें संस्कृत एवं हिन्दी भाषा में पारंगत किया करते थे। हरिवंश पुराण' की एक प्रशस्ति में उन्होंने मनोहर, मल्लिदास, गुणदाम इन तीन शिष्यों के नामों का उल्लेख किया है। ये शिष्य स्वयं इन से पढ़ते भी थे और दूसरों को भी पढ़ाते थे। परमहंस रास में एक नेमिदास का और उल्लेख किया है। उक्त शिष्यों के अतिरिक्त और भी अनेकों ने इनसे ज्ञानन्दान लेकर अपने जीवन को उपकृत किया होगा । १. संवत् चीबह से इक्यासी भला, श्रावण मास वसन्त रे । पूर्णिमा दिवसे पुरण कर्णे, मूलाचार महंत रे || २. ब्रह्म जिणदास भणे हवड़ो, पढ़ता पुण्य अपार । सिस्य मनोहर राषड़ों मल्लिदास गुणदास 11 ३. तिउ मुनिवर पाय प्रामीनें कीयो दो प रास सार । ब्रह्म जिणदास भरणे वड़ा, पढ़ता पुण्य अपार ॥ शिष्य मनोहर स्थड़ा ब्रह्म मल्लिवास पढ़ो पढ़ावो बहु भाव सों जिन होई सोस्य २३ गुणदास | विकास || ४. ब्रह्म जिनवास शिष्य निरमला नेविदास सुविचार | पढ़ई - पढ़ावरे बिस्तरो परमहंस भवतार ॥ ८ ॥ P VAN
SR No.090391
Book TitleRajasthan ke Jain Sant Vyaktitva evam Krititva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal
PublisherGendilal Shah Jaipur
Publication Year
Total Pages322
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & History
File Size5 MB
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