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________________ राजस्थान के जैन संत : व्यक्तित्व एवं कृतित्व साहित्य-सेवा सह्म जिनदास' का आत्म-साधना के अतिरिक्त अधिकांश समय साहित्यसर्जन में व्यतीत होता था । सरस्वती का वरदहस्त इन पर था तथा अध्यपन इनका गहरा आ । काव्य, चरित, पुराण, कथा, एवं रासो साहित्य से इन्हें बहुत रुचि थी और उसी के अनुसार वे काव्य रचना किया करते थे । इनके समय में 'रास-साहित्य' को सम्भवतः अच्छी प्रतिष्ठा थी। इसलिए जितनी अधिक संख्या में इन्होंने 'रासककाव्य' लिखे हैं, उतनी संख्या में हिन्दी में शायद ही किसी ने लिखा हो । वास्तव में एक विद्वान् द्वारा इतने अधिक काव्य ग्रंथ लिखना साहित्यिक इतिहास की अनोखी घटना है । अपने ८० वर्ष के जीवन काल में ६० से अधिक कृतियां—'मां भारती' को भेंट करना 'छ जिनदास' को अपनी विशेषता है। आत्म-साधना के साथ ही इन्हें पठन-पाठन एवं साहित्य-प्रचार का कार्य भी करना पड़ता था। यही नहीं अपने गुरु 'सकालकीत्ति' एवं भुवनकीति के साथ ये बिहार मी करते थे। इतने पर भी इन्होंने जो साहित्य-सजना को-वह इनकी लगन एवं निष्ठा का परिचायक है। कवि की अब तक जितनी कृतियाँ उपलब्ध हो सकी है उनके नाम इस प्रकार हैं: संस्कृत रचनाएं (i) काग्य, पुराण एवं कथा-साहित्य : (ii) पूजा एवं विविध साहित्य : १. जम्बूस्वामी चरित्र, १. जम्बूद्वीपपूजा, २. राम चरित्र ( पय पुराण ), .. २. सार्द्धद्वयद्वीपपूजा, ३. हरिवंश पुराण, ३. सप्तषि पूजा, ४. पुष्पांजलि प्रत कथा, ४. ज्येष्यजिनवर पूजा, ५. सोलहकारण पूजा, ६. गुरु-पूजा, ७, अनन्तन्त्रत पूजा, ८. जलयात्रा विधि राजस्थानी रचनाएं इनकी अब तक ५० से भी अधिक इस भाषा की रचनाएं उपलब्ध हो चुकी हैं। इन रचनाओं को निम्न भागों में बांटा जा सकता है:१. पुराण साहित्य, ४. पूजा साहित्य, २. रासक साहित्य, ५. स्फुट साहित्य,
SR No.090391
Book TitleRajasthan ke Jain Sant Vyaktitva evam Krititva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal
PublisherGendilal Shah Jaipur
Publication Year
Total Pages322
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & History
File Size5 MB
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