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________________ म० सकल फीति व्यक्तित्व एवं पाण्डित्य : भट्टारक सकलको ति असाधारण व्यक्तित्व वाले सन्त थे। इन्होंने जिन २ परम्पराओं की नींव रखी, उनका बाद में खूब विकास हुआ। प्रध्ययन गंभीर थाइसलिए कोई भी विद्वान इनके सामने नहीं टिक सकता था। प्राकृत एवं संस्कृत भाषानों पर इनका समान अधिकार था । ब्रह्म जिनदास एवं म. भुवनकीति जैसे विद्वानों का इनका शिष्य होना ही इनके प्रबल पाण्डित्य का सूचक है । इनकी वाणी में जादू था इसलिए जहां भी इनका विहार हो जाता था-वहीं इनके संकडों भक्त बन जाते थे । ये स्वयं तो योग्यतम विद्वान थे ही, किन्तु इन्होंने अपने शिष्यों को भी अपने ही समान विद्वान् बनाया । ब्रह्म जिनदास ने अपने जम्बू स्वामी चरित्र में इनको महाकवि, निन्थ राजा एवं शुद्ध चरित्रधारी' तथा हरिवंश पुराण में तपोनिधि एवं निन्य थष्ठ आदि उपाधियों से सम्बोधित किया है। भट्टारक सकलभूषण ने अपने उपदेश रत्नमाला की प्रशस्ति में कहा है कि सकलकत्ति जन-जन का चित्त स्वतः ही अपनी ओर आकृष्ट कर लेते थे। ये पुण्य मूर्तिस्वरूप थे तथा पुराण ग्रन्थों के रचयिता थे । ३ इसी तरह भट्टारक गुमचन्द्र ने 'सकलकीति' को पुराण एवं काव्यों का प्रसिद्ध नेता कहा है। इनके अतिरिक्त इनके बाद होने वाले प्रायः सभी मट्टारक ‘सन्तों ने सानालकीति के व्यक्तित्व एवं विद्वता को भारी प्रशंसा की है । ये भट्टारक थे किन्तु मुनि नाम से भी अपने-अापको सम्बोधित करते थे । 'धन्यकुमार चरित्र' ग्रन्थ की पुष्पिका में इन्होंने अपने-आपका 'मुनि सकलकीति' नाम से परिचय दिया है। ये स्वयं रहते भी नग्न अवस्था में ही थे और इसीलिए ये निग्रन्धकार अथवा 'निर्गन्थराज' के नाम से भी अपने शिष्यों द्वारा सम्बोधित किये गए हैं। इन्होंने बागड़ प्रदेश में जहां भट्टारकों का कोई प्रभाव नहीं था-संवत् १४९२ में गलियाकोट १. ततो भवत्तस्य जगत्प्रसिद्ध : पट्ट मनोज्ञे सकलादिकोत्तिः । महाकविः शुद्धचरित्रधारी निन्धराजा जगति प्रतापी ।। ___ जम्मूस्वामीचरित्र २. तत्पटपंफेजविकासभास्वान बभव निग्रन्थवरः प्रतापो । महाकवित्वादिकलाप्रवीण: तपोनिधिः श्री सकलादिकीसिः ॥ हरिवंश पुराण ३. तत्पधारी जनचिसहारी पुराणमुख्योत्तमशास्त्रकारी। भट्टारकीसकलादिकोत्तिः प्रसिद्धनामा जनि पुण्यमूतिः ॥२१६॥ -उपदेश रत्नमाला सकलभूषण
SR No.090391
Book TitleRajasthan ke Jain Sant Vyaktitva evam Krititva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal
PublisherGendilal Shah Jaipur
Publication Year
Total Pages322
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & History
File Size5 MB
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