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________________ राजस्थान के जन संत : व्यक्तित्व एवं कृतित्व में एक भट्टारक गादी की स्थापना की और अपने-प्रापको सरस्वती गच्छ एवं बलात्कारगण की परम्परा में भट्टारक घोषित किया । ये उत्कृष्ट तपस्वी थे तथा अपने जीवन में इन्होंने कितने ही प्रतों का पालन किया था। सफलकोत्ति ने जनता को जो कुछ चारित्र सम्बन्धी उपदेश दिया, पहिले उसे अपने जीवन में उतारा। : २ वाई केक कोर्ट से समय में ३५ से अधिक ग्रन्थों की रचना, विविध ग्रामों एवं नगरों में बिहार, भारत के राजस्थान, गुजरात, उत्तर प्रदेश, मध्यप्रदेश प्रादि प्रदेवों के तीर्थों की पद यात्रा एवं विविध व्रतों का पालन केवल सकलकी त्ति जैसे महा विद्वान् एवं प्रभावशाली व्यक्तित्व वाले साव से ही सम्पन्न हो सकते थे । इस प्रकार ये श्रद्धा. शान एवं बारित्र से विभूषित उत्कृष्ट एवं अकर्षक व्यक्तित्व वाले साघु थे । शिष्य-परम्परा भट्टारक सकलकोत्ति के कुल कितने शिष्य थे इसका कोई उल्लेख नहीं मिलता लेकिन एक पदावली के अनुसार इनके स्वर्गवास के पश्चात इनके शिष्य धर्मकीत्ति ने नोतनपुर में भट्टारक गद्दी स्थापित की । फिर विमलेन्द्र कात्ति भट्टारक हुये और १२ वर्ष तक इस पद पर रहे। इनके पश्चात् घाँतरी गांव में सब श्रावकों ने मिलकर संघवी सोमरास श्रावक को भट्टारक दीक्षा दी तथा उनका नाम भुवनकीत्ति रखा गया । लेकिन अन्य पट्टायलियों में एवं इस परम्परा होने वाले सन्नों के ग्रन्थों को प्रशस्तियों में सुधनकोत्ति के अतिरिक्त और किसी मट्टारक का उल्लेख नहीं मिलता। स्वयं भ. भुवनकीति, ब्रह्म जिनदास, ज्ञानभूपण, शुभचंद प्रादि सभी सन्तों ने भुवनकीत्ति को ही इनका प्रमुख शिष्य होना माना है। यह हो सकता है कि भुवनफीत्ति ने अपने आपको सकलकीति से सीधा सम्बन्ध बतलाने के लिये उक्त दोनों सन्तों के नामों के उल्लेख करने को परम्परा को नहीं डालना चाहा हो। भुवन कीत्ति के अतिरिक्त सकल क्रोत्ति के प्रमुख शिष्यों में ब्रह्म जिनदास का नाम उल्लेखनीय है जो संघ के सभी महाव्रती एवं ब्रह्मचारियों के प्रमुख थे । ये भी अपने गुरू के समान ही संस्कृत एवं राजस्थानी के प्रचंड विद्वान थे और साहित्य में विशेष रुचि रखते थे। 'सकल कीत्तिनुरास' में भुवनको त्ति एवं ब्रह्म जिन दास के अतिरिक्त ललितकीति के नाम का और उल्लेख किया है । इसके अतिरिक्त उनके संघ में आर्यिका एवं क्षुल्लिकायें थी ऐसा भी लिखा है 1 १ १. आवि शिष्य आचारिजहि गुरि बोखीया भूतलि भुवनकीत्ति । जयवन्त श्री जगतगुरु गुरि धोखीया ललितकोक्ति ।। महावती ब्रह्मचारी घणा जिणवास गोलागार प्रमुख अपार । अजिका भुल्लिका सयलसंघ गुरु सोभित सहित सफल परिवार ।।
SR No.090391
Book TitleRajasthan ke Jain Sant Vyaktitva evam Krititva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal
PublisherGendilal Shah Jaipur
Publication Year
Total Pages322
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & History
File Size5 MB
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