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चुनड़ी गीत
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द्वादस अंग घूघरी भूर, तेह सुग्गो नाचे देव मयूर । पंच ज्ञान वरणं हीर करता, दौत्य ध्वनि फुमना करना ॥राजी॥१२॥ एह चुनी उडी मनोहारि, गई राजुल स्वर्ग दुमारि । वसे अमर पुरि सुखकारी, सुख भोगवे राज्जुल नारी ॥राजी०॥१३॥ भावी भव बंघन छोड़े, पुत्रादिक मामें कोडे । धन थन बोमन मर कोडे, गजरथ बनुरा चित चुनड़ी ए जे धरसे, मनवांछित नेम सुख करसे 1 संसार सागर से तरसे, पुन्य रन नो भंडार भर से ॥राजी०॥१५॥ सुरि रत्नकीरति जसकारी, शुभ धर्म शशि गुरण पारी। नर नारि चुनड़ी गावे, ब्रह्म जय सागर कहे भावे ॥राजी०।१६।।
--इति चुनड़ी गीत