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________________ * चुनड़ी गीत * ब्रह्म जयसागर नेमि जिनवर नमीयाचो, चारित चुनही मागेंराजी। गिरिनार विभुषण नेम, गोरी गज गति कहे जिनदेव ।। राजिमति राजीव नयणी, कहे नेम प्रति पीक श्यणी 1 घम.पमति घुघरी जंगी, आपो चारिक चुनड़ी नवरङ्गो राजी॥३॥ पर भव्य जीव शुम वास, समकीन इरडांनो पास | पीलो पीलो परम रङ्ग सोह्यो, देखी अमरनि कर मन मोह्यो ।।राजी०२॥ मुल गुण रङ्ग फटको कीघ, जिनवाणी प्रमौरस दीघ । तप तेजे हे जे सुके, पटको रङ्ग नो नवि मुझे ॥राजी०॥३॥ एइ भाष्य करि ग्रज रूड़ो, टाले मिथ्या मत रङ्गभूड़ो। पंच परम मुनी ग्रह्यो छायो, भागत भीरी मली प्रासायो ।राजी०॥४॥ खाजली खरी च्यार नियंग, पांच माहावत कमल ने संग । पंच सुमति फूल अपंग, निरुपम नीलवरण सुरङ्ग ॥राजी०।।५।। उत्तर गुण लक्ष चौरासी, टवकती टबको शुभ भासी। क्रोया कर को संभे पासी, चढ को चढयो रङ्ग खासी ॥राजी०॥६॥ नीला पीला रङ्ग पालव सोहे, गुप्ति भयना मन मोहे ।। शिल सहस्त्र या यांच्य हो पासे, मजया भ""परव्रत सारे ॥राजी॥७॥ रंगे रागे बहु माहे रेख, नौसीकाली नबलड़ी शुम वेख । भवभृग भंगननी देख, कानी करुण नी रेम्स ।।राजीनामा मुख मंडण फूलड़ी फरति, मनोहर मुनि जन मन हरति । शुभ शान रङ्ग बहु चरति, वर सीध तणां सुख करति ॥राजी कपटाधिक रहीत सुबेली, सुखकरी करणा तणी केली । मोती चोक नुनी पर सेली च्यारदान चोकही भली मेहेली ॥राजी०॥१०॥ प्रतिमा द्वादश बर फूली, राजीमसो मुल तेज अमूली । देखी समरी चमरी बहु भूली, मेरू गिरि अदे ससु कूली ।।राजी०॥११॥
SR No.090391
Book TitleRajasthan ke Jain Sant Vyaktitva evam Krititva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal
PublisherGendilal Shah Jaipur
Publication Year
Total Pages322
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & History
File Size5 MB
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