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राजस्थान के जैन संत-व्यक्तित्व एन असिरक
तनिक पचु संजमु धारि, सत दह परकारि । तेरह विधि सहारि, चारितु लियं ॥ तपु द्वादस भेदह जारिण, आपरणु भगिहि आरिंग । बैठउ गुणह ठाणि उदोत कियं ।। तम कुमतु गइय धुसि, पोलिउ जगतु जसि । जैसेज पुनिउ ससि, निसि सरदे ।। यसे गोइम विमलमति, जिस वच घारि चिति । छेविय लोभह थिति, चहिउ पदे ।।११।।
जिन वंधिय सकल दृट्व, परम पाय निघट्ट । करत जीयह कठ, रमणि दिरणो । अगि हो तिय जिन्हहि प्राण, देतिय नमुति जाण । नरय तशिय वारण भोगत घणे ।। उइ मावत नरीहि जेइ, खडा समुह लेइ । सुपनि न दीसे तेहप्रवर केंदे ।।
से गोहम विमलमति, जिण बच धारि चिति । छेदिय लोमहि थिति, चडिउ पदे ॥११७।। देव दुघही वाजिय घण सुर मुनि मह गण ! मिलिय भविक जण, हुबर लियं ।। मंग ग्यारह चौदह पूव, विधारे प्रगट सब्य । मिथ्याती सुगत गश्च, मनि गलियं ।। जिसु वारिणय सकल पिय, चितिहि हरषु किम । संतोष उतिम जिय, धरमु वंदे ।।
से गोहम विमलमति, जिए क्व धारि किय । छेदिम लोमह थिति, चडिउ पक्षे ॥११८।।
घटपद
पडिउ सुपदि मोइमु लवधि तप वलि अति गधि । उदउहु वउ सासरिणहि सयमु आगमु मनु सज्जिउ ॥ हिंसा रहि हप वर तु सुभदु चारितु बसि जुठ्ठिल । हाकि विमलमति यारिंग कुमतिदल बरडि पट्ठिल ।।