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संतोष अतिक
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वंघिउ प्रचंडु दुद्धरु सुमन जिनि जगु सगलउ धुत्तियउ । जय तिलज मिलिज संतोष कहु लोभह सह इव जित्तियउ ॥११९||
गाथा
जव जित्त दुसह लोह, कोयत तव चित्त मझि आनंदे। हूब निकट रजो गह गहिवउ राज संतोषु ।।१२०|| संतोषुह जय तिलउ जंपिउ, हिसार नयर मंझ में । चे सुणहि भबिय इक्क मनि, ते पावहि बंझिम सुक्ख ।।१२१॥ संबति पनर इक्यारण भवि, सिय पक्खि पंचमी दिवसे । सुनक वारि स्वाति वृखे, लेउ तह जारिग बमना मेण ।।१२२॥
पद्धहि जे. के. मुद्ध भाएहि । जे सिक्वहि सुद्ध लिखाव, सुद्ध ध्यानि जे सुणहि ममु धरि । ते उतिम नारि नर अमर सुक्ख भोगवहि बहुधार । यह संतोषह जय तिलय जंपिउ बल्हि समाइ । . मंगल चौविह संघ कहु फरीह बीरु जिगराइ ॥१२३५
इति संतोष जय तिलकु समाप्ता
[दि० जैन मंदिर नागदा, बून्दी ।]