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________________ संतोष अतिक १५ - वंघिउ प्रचंडु दुद्धरु सुमन जिनि जगु सगलउ धुत्तियउ । जय तिलज मिलिज संतोष कहु लोभह सह इव जित्तियउ ॥११९|| गाथा जव जित्त दुसह लोह, कोयत तव चित्त मझि आनंदे। हूब निकट रजो गह गहिवउ राज संतोषु ।।१२०|| संतोषुह जय तिलउ जंपिउ, हिसार नयर मंझ में । चे सुणहि भबिय इक्क मनि, ते पावहि बंझिम सुक्ख ।।१२१॥ संबति पनर इक्यारण भवि, सिय पक्खि पंचमी दिवसे । सुनक वारि स्वाति वृखे, लेउ तह जारिग बमना मेण ।।१२२॥ पद्धहि जे. के. मुद्ध भाएहि । जे सिक्वहि सुद्ध लिखाव, सुद्ध ध्यानि जे सुणहि ममु धरि । ते उतिम नारि नर अमर सुक्ख भोगवहि बहुधार । यह संतोषह जय तिलय जंपिउ बल्हि समाइ । . मंगल चौविह संघ कहु फरीह बीरु जिगराइ ॥१२३५ इति संतोष जय तिलकु समाप्ता [दि० जैन मंदिर नागदा, बून्दी ।]
SR No.090391
Book TitleRajasthan ke Jain Sant Vyaktitva evam Krititva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal
PublisherGendilal Shah Jaipur
Publication Year
Total Pages322
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & History
File Size5 MB
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