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________________ संतोष जयतिलक रड उठि व्यानिय मुक्किय अग्गि धरणं । त्रिगण गा जलाय दोषु दि १॥१०१॥ कुमतिहि कुमा रगि सयमुनाया । गय जेड' गर्जनउ आउ जुड़या । त्रिण मत्तु परक्कम संघ गरे । लिंग हांकां लग पर जीय कुसील जु टु करें । भवन्त, समीर धाइ नगं । ममिभिनुन संकचरै ॥ कुर विदजि बागय पाटि दिगं ।। १० ।। दुखहुं तजिंदु गय दर सलो | साइज दिउ आइ निशंक मलो || परमा सुखु प्राय पूरि घट प धम ॥ उहु भाडि पिलोड किमाद वटं ॥ १०४ ॥ । बहु जुझिय सूर पारि बले । उद दीसहि जुटन मज्भि र ॥ किय दिन्सु रसातलि वीर बरा । किय तज्जित गए वलु मुक्कि घरा ॥ १०५ ॥ अन दंसण कंद रहूंत जहां | यहु तु संतोषहरा इकि मज्जि पट्टिय जाइ तहां ॥ था । द दिवस लोभिहि सेमुपया ||१०|| लोभि दिवस पहिल दलु जाम | तव धुरिणम सोस कर अन्य जेल सुभिउ न अग्गज । जणु धैरिज लहरि विषु कच कचाइट विधाइ लम्म ॥ करइ सूत्रकरण आकलन किचिन बुझइ पट्टु | जेस चराउ जति छलह तर्फि मउ भनइ भट्टु ॥ १०७॥ २०४९
SR No.090391
Book TitleRajasthan ke Jain Sant Vyaktitva evam Krititva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal
PublisherGendilal Shah Jaipur
Publication Year
Total Pages322
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & History
File Size5 MB
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