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________________ २४८ राजस्थान के जैन संत : व्यक्तित्व एवं कृतित्व वह माय महा करि रूप चली । ___ महु अम्गद सूरउ कवरपु वली ॥ दृषिक पौरप अज्ज विचीरि किया । तिसु जोति जयपतु वे गि लिया ॥१४॥ जब माय पडी रण म स्खले । ___ तक आइय कंक गर्जति बले ।। सब उट्टि खिमा जब घाउ दिया। तिनि वेगिहि प्राणनि नासु किया ।।१५।। अयज्ञानु चल्या उटि घोर मते । तिसु सोचन आईया कंपि चिते ।। उहु आवत हाक्या ज्ञानि जयं । ___ गय प्राण पख्या घरि भूमि तवं ॥१६॥ म यातु सधा सहि जीय रिपो। रूद कपि चङ्या सुइ सज्जि अपो।। समक्कतु डह्या उठि ओरिण अणी । धरि धुलि मिल्या दिय चूर घणी ॥९॥ कम्म असि सज्ज पड़े विषमं । जर छायउ अवरु रेस्मृ भमं ॥ तपु मानु प्रगासिज जाम दिसें । गय पाटि दिगंतरि मझि घुसे ॥९॥ जगु थ्यापि रहा सयु पास रयं । तिनि पौरिषु ठिा ता करयं ।। जव संवरू गजिज घोरि घट । उहु झाडि पिछोडि कियाद घटं १९९॥ स रागिहि धुत्तउ लोउसहो । रण प्रगणि लग्गउ मंझि गहो। अपराष्ट्र सुधायउ सज्जि करे । __ इव जुशि वितान्यो दृढ अरे ॥१०॥ यह दोषु जु शिव गहंति परं। रए अगरण उहाहि सिरं ।।
SR No.090391
Book TitleRajasthan ke Jain Sant Vyaktitva evam Krititva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal
PublisherGendilal Shah Jaipur
Publication Year
Total Pages322
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & History
File Size5 MB
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