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राजस्थान के जैन संत-व्यक्तित्व एवं कृतित्व
जग महि तिन्ह की नीह जि संतोषिहि रम्मित्र । पाप पटल धारसि अन्तर गति दम्मिय ।। राग दोष मन मशिन खिरण इकु आशियद। सस मित्त चितंतरि सम करि पारिण्य ह ।। ५२।।
जिन्ह संतोषु सरवाई नित रहइ कला । नाद कालि संतोष करई जीयह कुसला ।। . दिनका यह संतोषु विगासह हिद कमला । सृरु तह यहु संतोषु कि वंछित देइफला ||५३।। रयगा यह संतोषु कि रतनह रासि निधि । जिमु पसाइ संडहि मनोरथ सकल विधि ।। ............ ............ ...............। जे सतोषि संमाण तिन्हमन सझु गयउ ॥५४।।
जिन्हहि राउ. संतोषु सु सुट्टउ भाउ परि | परखती पर दवि न छीपहि तेइ हरि ।। कूड कपटु परपंचु सुचित्ति न लेखिहहि । तिणु कचरा मणि लुद्धसि सम करि देखिहहि ॥५५।।
पियउ अमिय संतोषु तिन्हहि नित महासुषु । लहिउ अमर पद ठागु गया पर भमरण दुखु ।। राइहंस जिउ नीर खीर गुण उद्धरइ । सम्म अद्धम्म परिख तेव हीय करइ ॥५६||
आय सुहमति ध्यानु मयुखि हीय भज्जड | कलहि कलेसु कुण्यानु कुबुधि यि तजइ ॥ लेड न किसही दोसु कि गुगा सयह महइ । पडइन प्रारति जीउ सदा चेतन रहा ।।५७॥
जाहि वाक परणाम होहि तितु सरल गति । छप्प जिउ निम्मलउ न लग्गाहि मलण चित्ति ।। ससि जिव जिन्ह पर कीत्ति सदा सोयच रहा । धवल जिय धरि कंधु गरुष मारह सहइ ॥५८।।