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राजस्थान के जैन संत : व्यक्तित्व एवं कृतित्व
पदरी छंच कुछ राग दोष तिसु लोभ पुत्त ।
जापहि प्रगट संसारि घुप्त । जह मित्त त्ता तह राग रंगु।
बह सत्त तहो दोषह प्रसंगु ।।४०||
बह राग तहां तह ग्राहि थुक्ति ।
जह दोष तहां तह छिद्र विसि ।। जह रान तहां तह पति पत्तिट्ठ।
जह दोष तहां तह काल दिट्ट ।।४।।
जह राण तहां सरलर सहाउ ।
जह दोषु तहां किमु वक्र भाउ ।। जह रागु तह भनह प्रबारिण।
जह दोषु सहाँ अपमानु जाणि ॥४२॥
ए दोनउ रहिय वियापि लोह ।
इन्ह वाझुन दीसइ महिय कोइ ।। नत हियह सिसलहि राग दोष ।
बट वाडे दारण मगह मोख ।।४३।।
पुत्त श्रीसिय लोम परि छोइ। बलु मंडिङ अप्पराउ, नाद कालि जिन्ह दुक्ख दीयउ । ईद जाल दिखाइ करि, वसी भून सद्ध लोग कीयउ ।। जोगी अंगम जतिय मुनि सभि रक्खे लिखलाइ । अटल न टाले जे टलहि फिरि फिरि जगह बाद ॥४४॥
लोभु राबउ रहिउ जY व्यापि । चउरासी लस महि जथ जोड पुरिण तत्थ सोईय । जे देखउ सोधि करि तासु वा नहु अस्थि कोइय ।। विकट बुद्धि जिनि सहिमु सिय घाले कंम्मह फंध । लोभ लहरि जिम्ह कहु चहिय दीसहि ते नर घ॥४५॥