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________________ २४० राजस्थान के जैन संत : व्यक्तित्व एवं कृतित्व पदरी छंच कुछ राग दोष तिसु लोभ पुत्त । जापहि प्रगट संसारि घुप्त । जह मित्त त्ता तह राग रंगु। बह सत्त तहो दोषह प्रसंगु ।।४०|| बह राग तहां तह ग्राहि थुक्ति । जह दोष तहां तह छिद्र विसि ।। जह रान तहां तह पति पत्तिट्ठ। जह दोष तहां तह काल दिट्ट ।।४।। जह राण तहां सरलर सहाउ । जह दोषु तहां किमु वक्र भाउ ।। जह रागु तह भनह प्रबारिण। जह दोषु सहाँ अपमानु जाणि ॥४२॥ ए दोनउ रहिय वियापि लोह । इन्ह वाझुन दीसइ महिय कोइ ।। नत हियह सिसलहि राग दोष । बट वाडे दारण मगह मोख ।।४३।। पुत्त श्रीसिय लोम परि छोइ। बलु मंडिङ अप्पराउ, नाद कालि जिन्ह दुक्ख दीयउ । ईद जाल दिखाइ करि, वसी भून सद्ध लोग कीयउ ।। जोगी अंगम जतिय मुनि सभि रक्खे लिखलाइ । अटल न टाले जे टलहि फिरि फिरि जगह बाद ॥४४॥ लोभु राबउ रहिउ जY व्यापि । चउरासी लस महि जथ जोड पुरिण तत्थ सोईय । जे देखउ सोधि करि तासु वा नहु अस्थि कोइय ।। विकट बुद्धि जिनि सहिमु सिय घाले कंम्मह फंध । लोभ लहरि जिम्ह कहु चहिय दीसहि ते नर घ॥४५॥
SR No.090391
Book TitleRajasthan ke Jain Sant Vyaktitva evam Krititva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal
PublisherGendilal Shah Jaipur
Publication Year
Total Pages322
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & History
File Size5 MB
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