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________________ मन्तोम जय तिलक । संवत् १५६१) साटिक जा अजान अवार फेडि करणं, सन्यान दो बंद्यते । जा दुःस्त्रं वह कग एण हरणं, वाइक सुग्गैसुहं ।। जादे वंम गुणा तियंच रमगी, मंक्किख तारणी : साजे जे जिणबीर वयरण सरियं वारणी अते निम्मलं ।।१।। विमल उपजल सुर सुर सगहि, सुविमल उज्जल सुर सुर सणेहि । सुरण भवियण गह गहह, मन, सु सरि जणु कवल खिल्ल हि । कल केवल पयदि पहि, पाप-पटल मिथ्यात पिल्लाह ।। कोटि दिवाकर तेउ तपि, निधि गुण रतनकरडु । सो वधमानु प्रसंनु नितु तारण तरणु तरंडु ।।२।। भषिय चित्त यह विधि उल्हासः । अउ कम्महं खिउ करगु सुद्धं घम्मु दह दिसि पयासणु ॥ पावापुरि श्री वीर जिणु जने सु पहुँत्ता आइ। तव देविहि मिलि संख्यउ समोस रणु बहु भाइ ।।३।। जब सुदेवइ इंद्र धरि ध्यानु नहु वारणी होह जिण । तव सुर (फ) पट मन महि उपायउ, हुइ वंभणु डोकरउ मच्च लोड सुरपत्ति आयउ ।। गोतमु नोतमु मह वर्म अघर सरोतमु वीरु । तत्य पढतउ आइ करि मघव गुणिहि गहीर ||४|| थिवरु वोलइ सुगाह हो विप्प तुम्ह घीसर विमल मति । इकु सन्देहु हम मनिहि थक्कर, w wwinimummmmmmmmmmwwwmmmmmmmmmmmmmmwwwmwwwmomsane १. ब्रह्म चराज एवं उनकी कृतियों का परिचय पृष्ठ ७० पर देखिये। maw
SR No.090391
Book TitleRajasthan ke Jain Sant Vyaktitva evam Krititva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal
PublisherGendilal Shah Jaipur
Publication Year
Total Pages322
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & History
File Size5 MB
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