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________________ श्रादोश्चरफाग २३३ आहे चारउ लीनी वाचकी साकची मापई एक । एक मापद गुड बीजीय बीजीय फणस अनेक ।।१२७।। आहे माथइ कूचोय ढीलीय नीलीय प्रापइ द्राख । निप्त निल खूण ऊतारइ जे मन लागह चाख ॥१२८।। पार तणा फल साकची सूको केला एक । पहूं आगुड़ बोजी धरणी आप फनस अनेक ॥१२६।। सिरि कूची मोती भरी हाथिइ नीली द्राख । लूण उतारइ माडली जे मन लागइ चास्वं ॥१३०॥ माहे मान तणीया साहेलड़ी सेलड़ी आपइ नारि । छोलीय छोलीय अपइ बइठीय रहइ घर वारि ॥१३१॥ आहे जादरीया फाकरीया घर या लाडूमा हाथि । सेवईया मेवईया आपइ तिलष्ट साथि ॥१३२।। सेव तणा आदिई करी लाष्ट्र मूकद हाथि । आरएछ गृलभेला करी आपइ तिलवट साथि 1।१३३॥ माहे तोंगण काईय पाईय प्राणीय प्रापह हाथि । तेवड़ा तेवड़ा चालक जमला चालइ साथि ।।१३४।। नालिकेर नीला भलां माडी प्राप' हाथि। जमला तेवड तेवडा बालक चासइ साथि ३१३५।। आहे आप लोबुन बीजांड वीजजरा धीर । जोईय जोईय मूकइ जिनधर बाबन वीर ॥१३६॥ प्रापइ लीडू अतिभला बौजुरा जवीर । हाथि लेई जो अइ रयद जिनवर बावन वीर ।।१३७।। माहे साजार साजाउ करेउ कीघउ चूर खजूर 1 प्रापइ केईय जोबइ गाइ वाप्र तूर ॥१३८॥ आपइ फलद खजूर शु केई खाजां यूर । कई गाव गीतड़ा एक बजाउद तुर ॥१३९॥ प्राहे श्रीयुत मित नित आबा देव तपउ संपात । अमिरिन प्रापइ पाएीय क्षारणीयनी कुरणवात ॥१४॥
SR No.090391
Book TitleRajasthan ke Jain Sant Vyaktitva evam Krititva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal
PublisherGendilal Shah Jaipur
Publication Year
Total Pages322
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & History
File Size5 MB
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