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________________ २३२ राजस्थान के जैन संत-व्यक्तित्व एवं कृतित्व आहे कोइ न मारणइ अमरख कमरख में कइ पासि । बेलांइ वेलां सुनेला केलानी बहु रासि ॥ ११२ ॥ सूनेलां वेलां मला काठेलांनी रासि । hs ल्याes कूकरणां कमरख कइ पासि ॥ ११३॥ आहे एक बजावर बाजाउ निर्वजांउ प्रापह एक । गावई गायण रायगा आप एक अनेक ॥। ११४।। बाज बाब श्राप रावण कोकडी पाकां रायण एक ॥। ११५ ।। आहे व तल्य गुरु 'द वड वर गूद विपाक । आप लिरि चोलीय चोलीय आरणीय बाक ।। ११६ ।। आई तू वडां बहां सरिस्यु गूंद विपाक | गुद लिख कुलेरि सराउ बोली भाई वाक ॥११७॥ आहे एक आह वर सोलाउ कोहलां फेरत पाक । गिरण आणीय बांध एक अनेक पताक ११११८ १ आहे साकर दूध विसूघउ दूध विपाक । प्रापइ एक जणी धरणी खांडती वर चाक ।। ११९ ।। साकर दूब कचोडी सुध दूध favan | आप एक जणी धरणी खांडवणी वर चाक ।। १२० ।। · आहे कोमल कोमल कमल तरगां फल प्रापद्म सार | नहींय दही दहीधरांनउ धोक लगार ।। १२१ । । कमल तर फल टोपरा पस्तां आपइ सार । दही दहीयथ संत बांक नहीय जगार ॥ १२२ ॥ आहे तर पूरढ पस तस खस खस आप एक । उन्हऊ पारणीय आरणीय अंगिकर नित सेक ।। १२३ ।। आप रू खाडनू खसखस आप एक | चांपेल बहड़ चोपडी अंगि कर जल रोक ।। १२४ ।। श्रहे कोठइ मोटा मोतीय मोतीय लाडू हाथि । जोवाज नित नित श्रावइ इन्द्र इन्द्राणी साथि ।। १२५ ।। कोट मोतो अति मलां मोती लाइ हाथि | जोवान प्राव वली इन्द्र सची बहु साथि ॥ १२६ ॥
SR No.090391
Book TitleRajasthan ke Jain Sant Vyaktitva evam Krititva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal
PublisherGendilal Shah Jaipur
Publication Year
Total Pages322
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & History
File Size5 MB
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