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________________ आदीश्वर फाग आहे कोटह मोटा मोतीयनु पहिराच्य हार । पहिरीयां भूषण रंगि न अंगि लगा रज मार आहे करि पहिराब सांकली सांकली प्रापर हाथि । रीखतु रोखुत चालइ चाइ जननी साथि ॥६६॥ श्राकटिकट मेल बांध बविद अंगद एक । कटक सुकट पहिरावर जासाइ बहुत विवेक ॥१००॥ चाहे प्रण घण घुघरी बाजद्द हेम ती बिहु पाइ । तिमतिम नरपति हरखइ हरलाइ मरुदेवी माइ ॥ १०१ ॥ आहे वगनाउ वगनाउ भगवाउ बाहुआ मूक आणि । बाल मरी नइ गमताच गमताउ लिइ निजपाणि ॥१०२॥ आहे क्षिणि जोवर क्षिणि सोदइ रोवइ लहीअ रुगार । आलि कर कर मोडइ त्रोट नवसर हार ||१०३ || आहे आप एक अकाल रसाल लगी करि साख । एक बार खारिक खरमास दाड़िम द्वाख ॥ १०४॥ आहे आगलि मूकइ एक नेक अखोड बदाम । लेई व ठाकर साकर बहु ठाम ॥१०५॥ ओह आवई जे तर तेवर घेवर आपि हाथि | जिम जिम बालक बांध तिम तिम बाधइ श्राधि ॥१०६॥ आहे प्रवर व सह छांडीय मांडीय मरकीय लैंषि । पपई आलि रमति बहु मरुदेवि ॥ १०७॥ आहे खांड मिलीय गलीय तलीय सवारइ रोव 1 सरगि यका नित सेबाउ जोगाउ भाव देव ॥१०८॥ खांड मिली हरखिद्द तली गली खवार सेव | कड़ आवई सेविया केई जोत्रा देव ॥१०२॥ हे आप एक अहोणीय फोरणीथ श्रीरणीय रेख । अयि देबीय देव तपी देखाइ देख ||११०॥ आप फीणी मनिरलो माह कोणी रेख । देवी आवइ सरगिथी देखाउ६ वे देख ३।१११० २३१
SR No.090391
Book TitleRajasthan ke Jain Sant Vyaktitva evam Krititva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal
PublisherGendilal Shah Jaipur
Publication Year
Total Pages322
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & History
File Size5 MB
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