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राजस्थान के जैन संत-व्यक्तित्व एवं कृतित्व
आहे अभिषव पूर सीध की अगि विलेप । प्रांगीया शिकारवाद कीघउ बहू आक्षेप ||८४
आहे आणीय बहुत विभूषण दूषया रहीत अभंग । पहिराया ते मनि रसी बली वली जोअद अंग || ८५ ||
जिन टीचर की
आहे नाम लूंग ! रूपनिरूपम देखीय हरि भरियां प्रांग ॥ ८६ ॥
आहे आगलि वालि के.ईय केईय जमला देव । लेईय जिनपति सुरपति चाजी करत सेव ||८७ ||
आहे अवीवा गगन गमनि नवि लागीय वार लगार । नाभि धरणि देवीय वंय न लाभह पार ||८८||
आहे नाभि पिता सखि व बइठीय मरुदेवी मात । खोलड़ मु'कीय बाल विशाल कही सहू वात ॥८६
आहे आपी साटक हाटक नाटक नाइ इन्द | नरल पागति परखइ हरखद्द नाभि नरिन्द ||६||
आहे जनम महोत्सव कोघउ दीघउ भोग कदम्ब । देव गया नृप प्ररणमीय प्रमीय जिनवर अब ॥१॥
आहे दिनि २ बालक यावर बीज तगु जिम चन्द | रिद्धि विबुद्धि विशुद्धि समाधि लसा कुल कंद ॥६२॥१
श्राहे देवकुमार रमा भात जमाडइ क्षीर | एक अरइ मुख आगलि आगीय निरमल नीर ।।१२।।
हे एक हसाव त्यावर कछडि चडावीय माल । नीति नहीय नहीय सलेखन नइ मुखिलाल ॥९४॥
आहे प्रांगीय अगि अनोपम उपभ रहित शरीर | टोपीय उपीय मस्त कि बालक छड़ पर वीर ॥६५॥
आहे काय कुण्डल झलकइ खलक नेउर पाइ । जिम जिम निरखइ हरखर हिवदइ तिमतिम भाई ||६||
आहे सोहरू हाटकन शुभ घाटि ललाटि ललाम | राहुअ बधाया नई सिसि जोवा आवद्द गाम ॥६७॥