SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 249
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ सम्यवाव मिथ्यात्व राम २२३ ग्यारसि सोमवार दितबार हो,ए लोकीक परम होइ । सांच्यो दितवार म करो हो, एह वीचार त जोइ ।। सहे० ॥५।। डावें हाथि तम्हे म जीमो हो, नवसीईफलनवि होह। अपवित्र हाथ ए जाणीइ हो, ए बीचार तु जोह ॥ सहे० ॥६॥ कष्ट भक्षण तम्हे म करोहो, एह मिथ्यातजि होइ । प्रातमा हत्याय नीय जो हो, पह वीचार तुजोइ ।। सहे० ॥७॥ सीता मंदोबरि द्रौपदी हो, अजना सुपरी सती होइ । कष्ट भक्षण इणे नवी कीयाए, एह वीचार लु जोई ।। सहे. तारा सुलोचना राजमती हो, चंदन बाला सती हो । कष्ट भक्षरा नवि इगा कीया, एह वीचार तु जोह ।। सहे. ॥६॥ नीलीय चेलणा प्रभावती हो, श्शनमती सती हो। कष्ट भक्षण नबि इन्हु कीघो, एह वीचार तु जोइ ।। सहे. ॥१०॥ प्राझिय सुंदरि अहिल्यामती हो, मदनमंजूषा सती होड । कष्ट मक्षरंग नवि इन्हु कोधो, एह वीचार तुजोइ ।। सहे० ॥११|| रुकुमीरिंग जांबुवती सतीभामाहो, लक्षमीमती सती हो । कष्ट भक्षण नवि इन्हु कोधो, एह वीचार तु जोइ ।। सहे० ।।१। पही मरण न बांछीए हो, कुमरणे सुगति न होइ । समाधि मरण मीत बांछीए हो, जीम परमापद होइ ।। स है ० ।।१३।। ना जप ध्यान पुजा कीधे हो, सीयल पाले सती होइ । सीयली आगि सम्ह मनदिनसाधो, जीम परमापद होइ ॥ सहे. ॥१४॥ छम जारिण निश्च्यो करिहो, मिथ्यात झरणी करो कोइ । समिकीत पालो निरमलो हो, जीम पर मापद होइ ।। सह ० ।।१५।। पाणि मथिइजीम घी नहीं हो, तुष माहि चीउल न होइ । तीम मिथ्या धर्म सम बहु कीये, श्रावक फल ननि होइ ।। सहे. ॥१६॥ भास रासनी पंचम कालि अज्ञान जीव मिथ्यात प्रगट्यो अपारतो। मू लोकें बहु आदर्योए, कोण जाणे एह पारतो॥१।।
SR No.090391
Book TitleRajasthan ke Jain Sant Vyaktitva evam Krititva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal
PublisherGendilal Shah Jaipur
Publication Year
Total Pages322
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & History
File Size5 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy