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________________ २२४ राजस्थान के जैन संत : यक्तित्व एवं कृतित्व वैवली मास्यु घरम फरोए, श्वावक तुम्हें इसुजाणतो। निग्रंथ गुरु उपद्वैसीयाए तेहनी करउ बखाणतो ।।२।। जीव दया वत पालोयए, सत्य वमण बोलो सारतो। परधन सयल निवारीमए, जीम पामो भवचारतो |॥३॥ शीयल वरत प्रतिपालीथए, त्रिभुवन माहि जे मारतो। परनारी सवे परह रोए, जीम पामो भव ए पारसो॥४॥ परिग्रह मक्षा (स्या) तम्ह करो ए, मन पसरतो निवारितो। नीम घणा प्रतिपालीयए, जीम पामो भव पारतो ॥५॥ दान पुजा निस निरमःलए, माहा मंत्र गणों एवकारतो । जिणबर भुवन करावीथए, जीम पामो भव पारतो ॥६॥ चरम पात्र घृत उदकए, छोती सबल नीवारि तो। प्राचार पालो तिरमलोए, जीम पामो भव पारतो ॥७॥ सोलकारण व्रत तम्हें करोए, दश लक्षण भव पारतो । पुष्पांजनि रत्नत्रयह, जीम पामो भय पारतो ॥८॥ अक्षयनिधि वस तम्हे करो, सुगंध दशमि भव पारतो । आकासपांचमि निझरपोचमीम, जीय जीम पामो मत्रपारतो ॥६। चांदन छटो अत तम्हे करो ए, अनंतबरत भव तारतो। निर्दोष सातमि मोड सातमिह, जीम पामो भव पारतो ॥१०॥ भुगतावलि व्रत तम्हे करोए, रतनावलि भव तारतो। कनकावलि एकावलिए, जीम पामो भवपारतो ।।११।। सबघवोधान व्रत तम्हे करोए, तमंद भव तारतो। नक्षत्रमाला कर्म निर्जलीयं, जीम पामों मव पारतो ॥१२॥ नंदोस्वर पंगति तम्हे करोए, मेर पंगति भक तारतो । विमान पंगति लक्षण पंगतीय, जीम पामो भवपारतो ।।१।। शीलकल्याएष यत तम्हे करोए, पांच ज्ञान भव तारतो। सुख संपति जिणगुण संपतीय,जीम पागो भव पारतो ॥१४॥ बोवीस तीर्थकर तम्हे करोए, भावना पौपीसी भव तारतो । पल्योपम कल्याणक तम्हे करोए, जीम पामो नव पारतो ॥१५॥
SR No.090391
Book TitleRajasthan ke Jain Sant Vyaktitva evam Krititva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal
PublisherGendilal Shah Jaipur
Publication Year
Total Pages322
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & History
File Size5 MB
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