SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 248
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ राजस्थान के र-व्यक्तित्व एवं कृतित्व इम जाणी तम्हें धरम करो, जीवदया जगि सार । जीम एहां फल पामीइ, वली तरीए संसारि ।।५।। सील साताभ ब्रीय मामि, नवाज नलि दुखखारिए । जीवरती सयल निवारीइ, जीम पामो सुखखाणि ।।६।। आदित रोट तम्हे झणी करो, माहा माई पुज निवारि । फलप्प कहो किम खाइए, थावक धरम मशारि ।।७।। गुरुणा रोट तम्हे झरणी करो, नारीय सपल सुजाणि । रोट दी नवि भुझीए, गृझीए पापं बखागि ॥८॥ रोट तु नबि सोभाग रहें दोमागजि होइ। धरमें सोमाग पामीऐ, पापें दो भाग जिहोइ ||६|| रोट बरत जे नारि करे, मनि धरि अति बहभाउ । घीय गुल दहि काकडि, ए खवा को उपाय ॥१०॥ जाग भोग सतारणा, मंडल सयल मिथ्यात । संका सबल निवारीए, बाडीए मूढ तरणी वात ॥११॥ नव राव मोडण न पुजीए, एह मिथ्यातजी होई। नबराति जीवा मेरे घगा, एह वीचार तु जोइ ।।११॥ कुल देवता नवि मानई, दोराडी मिथ्यातमी होह। जिण सासण ध्याउ निरमलो, एह वीचार तु जोई ॥१३॥ हाल सहेलडी की म्वा बारसी म करो हो, सराधि मिथ्यातजि होइ। परोलोकी जीव किम पामिसि हो, एह वीचारतु जोइ साहेलडी ॥११॥ जिन घरम प्रराधि सुचंदो, छेदि मिथ्यातहं कंदो। पीतर पाटा तम्हे मलीखोहो, एह मीच्या तजिहोइ । मूवो जीव कीम पाछो आवे, एह योचार तुजोइ स हेलड़ी ग्रहणममानो राहतणी हो, एह मिथ्यात जी होइ । चांद सूरिज इंद्र निरमला हो, एह ने ग्रहण न होइ सलेलडी ॥३॥ माहम ना हो सुधार हो, एह, मिथ्यात जी होइ। अनगलि नीर जीव मरे प्रणाहो, एह वीचार तु नोह ॥ सहे. 11४।।
SR No.090391
Book TitleRajasthan ke Jain Sant Vyaktitva evam Krititva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal
PublisherGendilal Shah Jaipur
Publication Year
Total Pages322
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & History
File Size5 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy