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________________ राजस्थान के जैन संत-व्यक्तित्व एनं कृतित्व कुमार | सिकरास' के नाम विशेषतः उल्लेखनीय हैं । श्री अगरचन्द जी नाहटा के अनुसार मुनि सुन्दर मूरि के स्थान पर मुनिचन्द्रप्रभ सूरि का नाम मिलता है ।' ३०. महोपाध्याय जयगसागर __ जयसागर खरतरगच्याच यं नि म रेमिय: हीरालाल जी माहेश्वरी ने इनका संवत् १४५० से १५१० तक का समय माना है । जब कि डा० प्रेमसागरजी र इन्हें संवत् १४७८-१४६५ तक का विद्वान माना है। ये अपने समय के अच्छे साहित्य निर्माता थे । राजस्थानी भाषा में निबस कोई ३२ छोटी बड़ी कृसिया अब तक इनकी उपलब्ध हो चुकी है। जो प्रायः स्तवन, धोनती एव स्तोत्र के रूप में हैं । संस्कृत एवं प्राकृत के भी ये प्रतिष्ठित विद्वान थे। 'सन्देह दोहावाली पर लघुवृत्ति', उपसर्गहरस्तोत्रवृत्ति, विज्ञप्ति त्रिवेणी, पर्वरश्नावलि कथा एवं पृथ्वीचन्दचरित्र इनकी प्रसिद्ध रचनायें हैं । ३१. वाचक मतिशेखर १६वी शताब्दि के प्रथम चरण के श्वेताम्बर जैन सन्तों में मतिशखर अपना विशेष स्थान रखते हैं। ये उपकेमागच्ट्रीय शीलसुन्दर के शिष्य थे। इनकी अब सक सात रचनायें सोजी जा चुकी है जिनके नाम निम्न प्रकार है १. धन्नारास (सं० १५१४) २. मयणरेहारास (सं० १५३७) ३. नमिनाथ बसंत फुलडा ४. कुरगढ़ महर्षिरास ५. इलापुत्र चरित्र माथा ६. नेमिगीत ७. बावनी ३२. हीरानन्दमूरि - ये पिप्पलगच्छ के श्री वीरप्रभसूरि के शिष्य थे। हिन्दी के पे मच्छे कवि थे। are -one -oranara - -- - १. परम्परा-राजस्थानी साहित्य का मध्यकाल-पृष्ठ संख्या ५६ २. राजस्थानी भाषा और साहित्य--पृष्ठ संख्या २४८ ३. हिन्वी जन भक्तिकाध्य और कवि-पृष्ठ संख्या ५२ ४. राजस्थानी भाषा और साहित्य-पृष्ठ सं० २५१ ५. हिची जैन भक्ति काव्य और कवि-पृष्ठ संख्या ५४
SR No.090391
Book TitleRajasthan ke Jain Sant Vyaktitva evam Krititva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal
PublisherGendilal Shah Jaipur
Publication Year
Total Pages322
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & History
File Size5 MB
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