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अवशिष्ट संत
प्राप्ति स्थान-रास की प्रति दि. जैन मन्दिर बड़ा तेरह पंथियों के शासन भंडार के एक गुटके में संग्रहीत है। गुटका का लेखन काल सं० १६४३ से १६६१ तक है । रास का लेखनकाल सं० १६४३ है।
२८. ज्ञानकीर्ति
ये वादिभूषण के शिष्य थे । आमेर के महाराजा मानसिंह (प्रथम) के मत्री नानू गोधा की प्रार्थना पर इन्होंने 'यशोधर चरित्र' काव्य की रचना की थी।' इम कृति का रचनाकाल संवत् १६५९ है । इसकी एक प्रति आमेर शान्त्र भंडार में संग्रहील है।
श्वेताम्बर जैन संत
अब तक जितने मो सन्तों की साहित्य-सेवाओं का परिचय दिया गया है. वे सब दिगम्बर सन्त थे, किन्तु राजस्थान में दिगम्बर सन्तों के समान श्वेताम्बर सन्त भी सैकड़ों की संख्या में हुए है-जिन्होंने संस्कृत, हिन्दी एवं राजस्थानो कृतियों के माध्यम से साहित्य की महती सेवा की थी। श्वेताम्बर कवियों की साहित्य सेवा पर विस्तृत प्रकाश कितनी ही पुस्तकों में डाना जा चुका है । राजस्थान के इन सन्तों को साहित्य सेवानों पर प्रकाश डालने का मुख्य श्रेय श्री अगरचन्द जी नाहटा, डा० हीरालाल जी माहेश्वरी प्रभृति विद्वानों को है जिन्होंने अपनी पुस्तकों एवं लेखों के माध्यम से उनकी विभिन्न कृतियों का परिचय दिया है। प्रस्तुत पृष्ठों में स्वेताम्बर समाज के कतिपय सन्तों का परिचय उपस्थित किया जा रहा है:२६. पुनि सुन्दरमरि
ये तपागच्छोय साधु थे 1 संवत् १५०१ में इन्होने 'सुदर्शन किरास' की रचना की थी। कवि की अब तक १८ से भी अधिक रचनायें प्राप्त हो चुकी हैं । जिनमें 'रोहिणीय प्रवन्धरास', जम्बूस्वामी चौपई', 'वनस्वामी चौपई', अभय
इति श्री यशोषरमहाराजचरित्र भट्टारकधीव विभूषण शिष्याचार्य श्री शानकीतिविरचिते राजाधिराज महाराम मान सिंह प्रधानसाह श्री नानूनामांकि भट्टारकश्रीअभयस्यावि दीक्षानहम स्वर्गादि प्राप्त वर्णनो नाम नवमः सर्गः ।