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________________ भवशिष्ट संत २१३ अब तक इनकी वस्तुपाल तेजपाल रास (सं० १४८४) विद्याविलास पचाडो (वि०सं० १४८५) कलिकाल रास ( वि० सं० १४८६ ) शार्णमदरास, जंबूस्वामी वीवाहला (१४६५)ौर स्यूलिभद्र बारहमासा आदि महत्वपूर्ण रचनायें उपलब्ध हो चुकी हैं। विद्याविलास का मंगलाचरण देखिये जिसमे ऋषभदेष, शान्तिनाथ, नेमिनाथ, पाश्चं नाथ, महावीर एवं देवी सरस्वती को नमरकार दिया गया है पहिसुप्रणमीय पढम जिणेसर सत्तु जय अवतार। हथियारि भी शांति जिणेसर उज्जति निमिकुमार । जीरा लिपुरि पास जिणेसर, सांचटरे वर्तमान । कासमीर पुरि सरसति सामिरिण, दिउ मुझ नई बरदान ॥ ३३. वाचक विनय समुद्र ये उपफेशीयगन्छ वाचक हर्ष समुद्र के शिष्य थे। इनका रचना काल संवत् १५८३ से १६१४ तक का है। इनकी बीस रचनाओं की खोज की जा चुकी है । इनके नाम निम्न प्रकार है पत्र संख्या ५६३ पद्य संख्या २४८ पद्य सख्या २४७ पद्म संख्या ४४ १ विक्रम पंचदंड चौपई (सं० १५८३) २. आराम शोभा चौपई ३. अम्बड चौपई १५९९ ४. मुगावती चौपई १६०२ ५. चित्रसेन पमा वस्तीरास ६. पद्मचरित्र १६०४ ७. शीलरास ८. रोहिशोगस ९. सिंहासनबत्तीसो १०. पाश्र्वनाथस्तवन ११. नलदमयन्तीरास १६१४ १२. संग्राम सूरि चौपई १३. चन्दनबालारास १४. नमिराजषिसंधि १५. साघु वन्दना १६. ब्रह्मपरी गाथा पद्य संख्या ३९ पच संख्या ६६ १०२ am . १. देखिये परम्परा-राजस्थानी साहित्य का मध्यकाल--पृष्ठ सं० ६६-७६
SR No.090391
Book TitleRajasthan ke Jain Sant Vyaktitva evam Krititva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal
PublisherGendilal Shah Jaipur
Publication Year
Total Pages322
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & History
File Size5 MB
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