SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 208
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १८२ राजस्थान के जैन संत-व्यक्तित्व एवं कृतित्व 1 ने तपंचमी उद्यापन पर लिखवायो यो । सं. १५१७ में भुगु में ही तिलोयपत्ति की प्रति वायी गयी थी। पं० मैद्याची इनका एक प्रमुख शिष्य था जो 'साहित्य रचना में विशेष रुचि रखता था । इन्होंने नागीर में धर्मसंप्रावकाचार की संवत् १५४१ में रखना समाप्त की थी इसकी प्रवास्ति में विद्वान् लेखक ने जिनचंद्र की निम्नं शब्दों में स्तुति की है— 1 : तस्मान्नीरदिदुरभवछ्रीमज्जनंद्रगणी । स्याद्वादांबर मंडलैः कृतगति दिगवाससां मंडनः ॥ यो व्याख्यानमरीचिभिः कुवलये प्रल्हादनं चक्रवान् । सद्वृत्तः सकलकलंक विकलः पटुतर्कनिष्णातधी ॥१२॥३ स्वयं भट्टारक जिमचन्द्र की अभी तक कोई महत्त्वपूर्ण रचना उपलब्ध नहीं हो सकी है लेकिन देहली, हिसार, आगरा आदि के शास्त्र भण्डारों की खोज के पश्चात् संभवतः कोई इनकी बड़ी रचना भी उपलब्ध हो सके। अब तक इनकी जो दो रचनायें उपलब्ध हुई हैं उनके नाम है सिद्धान्तसार और जिनचविंशतिस्तोत्र । सिद्धान्तसार एक प्राकृत भाषा का ग्रन्थ है ओर उसमें जिननन्द्र के नाम से निम्न प्रकार उल्लेख हुआ है पवयरणपमाणलकखरण छंदालंकार रहियहियए । जिस देण पचत्तं' इसमागमभत्तिजुते ||७८ ।। ( माणिकचन्द्र ग्रंथमाला बम्बई ) जिनचतुविंशाति स्तोत्र की एक प्रति जयपुर के विजयराम पांड्या के शास्त्र भण्डार के एक गुटके में संग्रहीत है। रचना संस्कृत में है और उसमें चौबीस सीर्थकरों की स्तुति की गयी है । साहित्य प्रचार के अतिरिक्त इन्होंने प्राचीन मन्दिरों का खूब जीहार करवाया एवं नवीन प्रतिमाओं की प्रतिष्ठायें करवा कर उन्हें मन्दिरों में विराजमान किया गया। जिनचन्द्र के समय में भारत पर मुसलमानों का राज्य था इसलिये वे प्रायः मन्दिरों एवं मूर्तियों को लोड़ते रहते थे । विन्तु भट्टारक जिनचन्द्र प्रतिवर्ष नयी नयी प्रतिष्ठायें करवाते और नये नये मन्दिरों का निर्माण कराने के लिये rasi को प्रोत्साहित करते रहते । संवत् १५०९ में संभवतः उन्होंने महारक बनने के पश्चात् प्रथम बार धोपे ग्राम में शान्तिनाथ की मूर्ति स्थापित को थी । सं. १५१७ मंगसिर शुल्क १० को उन्होंने चाँबोसी की प्रतिमा स्थापित की। इसी तरह १५.२३ में भी चोबीसी की प्रतिमा प्रतिष्ठापित करके स्थापना की गयी । संवत् १५४२,
SR No.090391
Book TitleRajasthan ke Jain Sant Vyaktitva evam Krititva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal
PublisherGendilal Shah Jaipur
Publication Year
Total Pages322
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & History
File Size5 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy