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________________ अवशिष्ट संत १८१ आवां (टोंक, राजस्थान) में एक मील पश्चिम की ओर एक छोटी सी पहाड़ी पर नासियां हैं जिसमें भट्टारक शुभचन्द्र, जिपचन्द्र एवं प्रमाचन्द्र की निषेधिकार्य स्थापित की हुई हैं ये तीनों निषेषिकाएं संवत् १५९३ व्येष्ठ सुदी ३ सोमवार के दिन भ० प्रभाचन्द्र के शिष्य मंडलाचार्य धर्मचन्द्र ने साह कालू एवं इसके चार पुष एवं पौत्रों के द्वारा स्थापित करायी थी । भट्टारक जिनचन्द्र की निषेधिका की ऊंचाई एवं चोड़ाई १४३ इंच है। इसी समय आयां में एक बड़ी भारी प्रतिष्ठा भी हुई थी जिसका ऐतिहासिक लेख वहीं के एक शांतिनाथ के मन्दिर में लगा हुमा है । लेख संस्कृत में है और उस में भ० जिनचन्द का निम्न शब्दों में यशोगान किया गया है तत्पदृस्थपरो श्रीमान् जिनचन्द्रः सुतत्ववित् । अभूतो ऽस्मिन् , विख्यातो ध्यानार्थी पग्धकर्मक ।। साहित्य सेवा जिनचन्द्र का प्राचीन ग्रंथों का नवीनीकरण की ओर विशेष ध्यान था इसलिये इनके द्वारा लिखवायी गयी कितनी ही हस्तलिखित प्रतियां राजस्थान के जैन शास्त्र भण्डारों में उपलब्ध होती हैं। संबत् १५१२ की अषाढ कृष्ण १२ को नेमिनाथ चरित की एक प्रति लिखी गयी थी जिसे इन्हें घोषा बन्दगाह में नयनन्दि मुनि ने समर्पित की थी ।' सबत् १५१५ में नए वा नगर में इनवे. शिष्य अनन्तको त्ति द्वारा नरसे नदेव की सिद्धचक्र कथा ( अपभ्रंश ) को प्रतिलिपि धावक नारायण के पठनार्थ करवायी । इसी तरह संवत्' १५२१ में ग्वालियर में पसमचरिट की प्रतिलिपि करवा कर नेत्रनन्दि मुनि को अर्पण की गयो । ३ संवत् १५५८ को श्रावण शुल्क १२ को इनकी माम्नाय में ग्वालियर में महाराजा मानसिंह के शासन काल में नागमार चरित की प्रति लिखवायी गयी। मूलाचार की एक लेखक प्रशस्ति में भट्टारक जिमचन्द्र की निम्न शब्दों में प्रशंसा की गयी है तदीपपट्टाबरभानुमाली क्षमादिनानागुणरत्नशाली । भट्टारकी जिनचन्द्रनामा सैद्धान्तिकानां भुवि योस्ति सीमा ।। इसकी प्रति को संवत् १५१६ में मुभुनु ( राजस्थान) में साह पार्श्व के पुत्रों aimamaAIMILAIMARIKAmraeminatammanamamimarw १. वेलिये भट्टारक पट्टायली पृष्ठ संख्या १०८ २. वहीं
SR No.090391
Book TitleRajasthan ke Jain Sant Vyaktitva evam Krititva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal
PublisherGendilal Shah Jaipur
Publication Year
Total Pages322
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & History
File Size5 MB
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